कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता सत्तधारी नेता के गुण्डे बदमाशों से सुरक्षित नहीं, एक किसान नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता की ज़ुबानी;

जमीनी कार्यकर्ताओं को कभी भी सुरक्षा मुहैया नहीं होती

देशभर में सत्तारूढ़ दल का विरोध कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं अर्थात सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्तियों पर आए दिन हमलों की घटनाएं अखबारों में प्रकाशित होती रहती हैं। हमलावरों को सजाएं मिलने की खबरें ना के बराबर पढ़ने को मिलती हैं।

इसका परिणाम यह होता है कि कानून का डर, कानून हाथ में लेने वाले हमलावरों के मन में लगातार कम होता जाता है तथा सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहने वाले व्यक्तियों का जीवन लगातार असुरक्षित होता चला जाता है। बड़े नेता तो गनमैन से लेकर ज़ेड स्तर की सुरक्षा प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं को सुरक्षा भी मुहैया नहीं होती।

आजादी के बाद आज तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय कितने व्यक्तियों पर हमले हुए उसका कोई अधिकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है लेकिन मुझ पर जो हमले हुए उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमला चाहे जैसा भी हुआ हो लेकिन हमलावरों को कभी भी सजा के चलते जेल नहीं काटनी पड़ी।

40 वर्ष के सार्वजनिक जीवन में मुझ पर 12 बार जानलेवा हमले हुए हैं। परन्तु एक भी प्रकरण में हमलावरों को सजा नहीं काटनी पड़ी। जब मैं बैतूल नया-नया गया था तब सन् 1985 में मुझ पर तत्कालीन बैतूल जिले के कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गया प्रसाद मेहतो के बेटे अशोक मेहतो के कहने पर कांग्रेसी नेता मिंटो विश्वास एवं अन्य गुंडों द्वारा जानलेवा हमला किया गया था। हमले के परिणामस्वरुप मैं चोपना के बाजार में कई घंटों तक बेहोश रहा तथा हमलावरों पर मुकदमा दर्ज करने की बजाय मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया तथा मुझे जेल भेजा गया।

दूसरा हमला वीयर वेल टायर फैक्ट्री आमला में मजदूर आंदोलन के दौरान फैक्ट्री के सुरक्षा अधिकारी चंदेल और अन्य सुरक्षा गार्डों द्वारा फैक्ट्री के नजदीक आमला रोड पर किया गया। रात भर मैं सड़क पर बेहोश पड़ा रहा। सुबह फिर अस्पताल पहुंचाया गया। एक बार जब मैंने बैतूल में साइकिल यात्रा की तब मुझ पर ट्रक चढ़ाने की कोशिश हुई थी, इसी तरह घोड़ाडोंगरी से सारणी रोड पर राम मंदिर के पास मोटरसाइकिल से जाते समय मुझ पर हमला किया गया था जिसके बाद मैं कई महीने अस्पताल में भर्ती रहा था।

मुलताई में तीन गांव में हमले हुए एक हमला जौलखेड़ा में भाजपा के नेता राजा पवार के मामा के द्वारा किया गया, दूसरा हमला पारडसिंगा में कांग्रेस के पूर्व विधायक पंजाबराव बोड़खे के भांजे द्वारा किया गया तथा तीसरा हमला चिल्हाटी गांव में कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा किया गया। चौथा हमला मुलताई कृषि मंडी पर जब मैं धरना दे रहा था तब कांग्रेस के गुंडों द्वारा रियाज़ पहलवान के नेतृत्व में धरना स्थल पर किया गया था।

इन सभी हमलों के बाद मैंने नामजद एफआईआर दर्ज कराई थी लेकिन किसी भी प्रकरण में पारडसिंगा के हमलावरों को छोड़कर किसी को भी सजा नहीं हुई। पारडसिंगा में हमलावरों को 2 वर्ष की सजा लोअर कोर्ट ने दी थी लेकिन उन्होंने भी जेल नहीं काटी।

इसके साथ – साथ 3 वर्ष पहले ट्रेन में हमला करने का प्रयास हुआ जिसका प्रकरण अभी बीना न्यायालय में लंबित है। इसी तरह एक घटना एक प्रदेश यात्रा के दौरान गुना जिले में हुई थी, जिसके बाद प्रकरण दर्ज किया था, जो शायद आज भी लंबित है। शायद मैंने इसलिए लिखा है क्योंकि थाने से प्रकरण को लेकर कई बार फोन आता रहा है।

हाल ही में छिंदवाड़ा न्यायालय में अडानी पावर प्रोजेक्ट के सीईओ के नेतृत्व में हुए हमले के 10 साल के बाद हमलावरों को 1 साल की सजा दी है लेकिन मैं जानता हूं कि हमलावरों को 1 साल की जेल नहीं काटनी पड़ेगी। इस हमले में मेरा हाथ भी फैक्चर हुआ था। अधिवक्ता आराधना भार्गव का हाथ फ्रैक्चर होने के साथ सिर में गहरी चोट भी लगी थी। यानी मामला हत्या के प्रयास का था। लेकिन सजा मारपीट की दी गई।
उक्त घटनाओं का उल्लेख करने का मकसद यह बतलाना है कि पुलिस द्वारा किसी भी प्रकरण को गंभीरता से नहीं लिया गया। हल्की धाराओं में प्रकरण दर्ज किए गए, गवाहों पर दबाव डालकर बयान बदलवाए गए।

सरकारें एक तरफ हमलावरों को संरक्षण देती रहीं दूसरी तरफ मुझ पर मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा सैकड़ों मुकदमे दर्ज किए गए ताकि मैं स्वतंत्रता पूर्वक काम न कर सकूं। मेरे आस-पास रहने वाले कार्यकर्ता को भयभीत कर दिया गया। ऐसी छवि बना दी गई कि जो भी डॉ सुनीलम के नज़दीक जाएगा उस पर मुकदमा थोप दिया जाएगा ।जेल भेज दिया जाएगा।

हालांकि कुल दर्ज 140 मुकदमों में से 136 मुकदमे अब तक समाप्त हो चुके हैं, लेकिन 3 मुकदमों में मुझे 54 वर्ष की सजा सुनाई गई है। तीनों प्रकरण मुलताई गोली चालन से जुड़े हैं, जिसमें 24 किसान शहीद हुए थे तथा 150 किसानों को गोली लगी थी। इसका मकसद डर पैदा करना है ताकि कोई आंदोलन के बारे में न सोचे।
मैंने जिन मुकदमों का जिक्र किया है वह मुकदमें 10 साल से 20 साल तक विभिन्न अदालतों में चले। मेरे साथ सैकड़ों साथियों ने लगातार अदालत के चक्कर लगाए। 25 से अधिक साथियों की मुकदमों के दौरान आरोपी के तौर पर मौत भी हो गई।

इन दिनों संयुक्त किसान मोर्चा गत एक वर्ष के दौरान किसानों पर लादे गए फर्जी मुकदमों से जूझ रहा है। मैं जानता हूं कि यदि सभी फर्जी मुकदमों को वापस नहीं लिया गया तो अगले 10 – 20 साल, जिन किसानों को पुलिस ने फंसाया है, उनका जीवन दूभर हो जाएगा। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा को बिना सभी फर्जी मुकदमों की वापसी के दिल्ली के बॉर्डरों पर चल रहे आंदोलन को समाप्त नहीं करना चाहिए। देश के सभी आंदोलनकारी किसान भी यही चाहते हैं।