बिलासपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल अफसरों की कोरोना पर महत्वपूर्ण बैठक की। इसमें रायपुर और दुर्ग की नियंत्रित होते हालात पर संतोष व्यक्त किया गया, वहीं बिलासपुर संभाग में बिगड़ती स्थिति पर मुख्यमंत्री ने गंभीर चिंता जताई। उन्होंने अफसरों को पूरा ध्यान बिलासपुर पर केंद्रित करने का निर्देश दिया। फोकस करने कहा है। मुख्यमंत्री की चिंता से समझा जा सकता है, बिलासपुर के हालात क्या हैं।
बिलासपुर में 14 दिन में 414 लोगों की कोरोना से मौतें हो चुकी है। ये सरकारी आंकड़ा है। गैर सरकारी तो और भी ज्यादा होगी। इसके बाद भी बिलासपुर की स्थिति अंधेर नगरी, चौपट राजा जैसी हो गई है।
अजीब मिजाज का शहर है बिलासपुर…स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कोई भी आदमी मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं। लोग मर रहे और बिलासपुर के उद्योगपति और व्यापारियों के नुमाइंदे कहे जाने वाले हरीश केडिया लॉकडाउन के खिलाफ राग अलाप रहे। वैसे भी, बिलासपुर के नेताओं से कभी कोई उम्मीदें रहीं नहीं। वरना, जिस इलाके में एसईसीएल, जोनल रेलवे और एनटीपीसी जैसे केंद्रीय संस्थान हो वहाँ के लोग बेड के अभाव में भला दम तोड़ते? NTPC के प्रदूषण की मार पड़ रही बिलासपुर सम्भाग के लोगों पर, लेकिन वह 110 करोड़ में ट्रिपल आईआईटी बनवाता है नया रायपुर में।
दरअसल, नेताओं को सिर्फ केंद्रीय संस्थाओं से इसी बात से वास्ता रहा, रेलवे, SECL और NTPC में ठेका मिल जाये और अपोलो से मुफ्त का इलाज।
अपोलो जैसे भरोसेमंद अस्पताल होने के बाद भी लोग बिना इलाज के दम तोड़ रहे, तो उसका बड़ा कारण नेताओं का भाई, भतीजावाद और मुफ्त के इलाज के कारण उनका मुंह सिल लेना है। आप भी समझ सकते हैं कि कोई नेता अपोलो से बेड बढ़ाने बयान क्यों नहीं दे रहा….अपोलो की हठधर्मिता पर मुंह नहीं खोल रहा। सबकी वही मजबूरी है, जो ऊपर लिखा गया है। अपोलो ने बड़ी चतुराई से नेताओं को साधा है।
जिस शहर के विधायक और सांसद SECL से 25 लाख मांगकर लाने के क्रेडिट लेने के लिए होड़ कर रहे हों, अब आप अंदाजा लगा सकते हैं, नेतृत्व कितना दमदार है। रोज 50 मौतें हो रही और 25 लाख के लिए श्रे लूटना…।
रही बात अब जिला प्रशासन की…तो उसने बड़ी चतुराई से प्रशासन को 10 दिन में 164 बेड करने का झुनझुना पकड़ा दिया। अपोलो प्रबंधन को मालूम है, 10 दिन में पिक कम हो जाएगा, फिर तो जाहिर तौर पर बेड बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जरा आप सोचिए दुश्मन देश की सेना बॉर्डर पार कर देश के भीतर घुस आए और अपनी सेना तैयारी करने के लिए 10 दिन का वक्त मांगे, वैसा ही कुछ अपोलो प्रबंधन कर रहा है। 14 दिन में 414 मौतें सरकारी आँकड़े के हिसाब से हुई है। फिर 10 दिन में कितने लोग दम तोड़ देंगे, समझा जा सकता है।
लेकिन, इतनी आसान बात बिलासपुर के नेताओं को समझ में नहीं आ रही, और न ही जिला प्रशासन के जिम्मेदार अफसर इस खतरे को भांप पा रहे।
बेचारे बड़े मीडिया संस्थानों की व्यवसायिक मजबूरियां हैं, किन्तु बिलासपुर के लोगों को सोशल मीडिया ने भी निराश किया है। सोशल मीडिया की हालत ये है कि कलेक्टर एक ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया करवा दिए तो कसीदें गढ़ने की होड़ मच जा रही। सोशल मीडिया अपनी भूमिका कम, नेताओं और अफसरों के ब्रांडिंग का काम शिद्दत से कर रहा। और जब नेता, अफसर, कारोबारी और मीडिया, सभी अपना कर्तव्य भूल सिस्टम के साथ करतल करने लगे तो उस शहर के लोगों का यही हाल होगा।
2020 में अपोलो की कमाई 434 करोड़
गूगल पर सर्च करने पर पता चला है, अपोलो ग्रुप ने पिछले वित्तीय वर्ष में 434 करोड़ का मुनाफा अर्जित किया। सिर्फ SECL से ही अपोलो अस्पताल को हर साल 50 से 55 करोड़ रुपये मिलते हैं। इससे जाहिर होता है इस कॉरपोरेट हॉस्पिटल की बिलासपुर यूनिट से कमाई कितनी होगी। इतना कमाने के बाद भी अपोलो का कोई सीएसआर मद नहीं है। बिलासपुर शहर के लिए कुछ करने की बात तो अलग है, आम आदमी को बेड नसीब नहीं होता।