रायपुर. हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे सबसे बड़ी अमावस्या माना गया है. माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या होती है. सभी अमावस्याओं में मौनी अमावस्या का विशेष स्थान है. मौनी अमावस्या के दिन लोग मौन व्रतधारण करते हैं. मौन व्रत के दौरान लोग प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं, ध्यान लगाते हैं. ऐसा करके भक्त आध्यात्म की ओर बढ़ते हैं. मौनी अमावस्या के दिन श्रद्धालु स्नान के बाद पितरों को तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि कर्म करते हैं. यदि कोई व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित है तो उन्हें अमावस्या के दिन ये सब उपाय करने चाहिए. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान कर अक्षय पुण्यफल प्राप्त की जा सकती है.
शिव महापुराण में मौनी अमावस्या का महत्व बताया गया है कि जो मनुष्य इस दिन गंगा, यमुना आदि नदियों में स्नान करके सच्चे मन से दान करता है उस पर समस्त ग्रह-नक्षत्रों की कृपा बनी रहती है. क्योंकि मान्यता है कि जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले तो देवताओं और राक्षसों की लड़ाई की वजह से अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे संगम में गिर गई थी, इसलिए नदी स्नान से अमृत प्राप्त होता है जो ग्रह कष्ट निवारण में सहायक होता है. इस दिन भगवान मनु का भी जन्म हुआ था.
इस व्रत को मौन धारण करके व यमुना या गंगा में स्नान करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है. चंद्रमा मन के स्वामी हैं पर अमावस्या को चंद्र दर्शन नहीं होने से मन कमजोर होता है. अतः मौन रखकर मन को संयम में रखने और मानसिक जाप करने से मन शांत रहता है, जिससे जीवन में भी शांति बनी रहती है. अत: अगर चुप रहना संभव नहीं है तो कम से कम अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें.
मौनी अमावस्या के व्रत नियम
– ब्रह्ममुहूर्त या शाम को स्नान के पहले व्रत का संकल्प लें.
– ब्रह्ममुहूर्त में गंगा नदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करें.
– स्नान करने के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करें और जल में काले तिल सूर्य देव को अर्घ्य दें.
– सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत मंत्र जाप करें और दान आदि करें.
– श्रद्धालु अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, घी और गौ शाला में गाय के लिए भोजन दान कर सकते हैं.
– मौनी अमावस्या के दिन व्रत रखकर यदि संभव हो मौन व्रत धारण करें.
– मौनी अमावस्या के दिन क्रोध न करें. किसी को अपशब्द न कहें.
– मौनी अमावस्या के दिन श्रद्धालुओं को ईश्वर की भक्ति में लीन रहना चाहिए.