केरल में कोट्टायम की एक अदालत ने पिछले शुक्रवार को जालंधर डियोसेज़ के पूर्व बिशप फ्रैंको मुलक्कल को एक नन के साथ बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया.
इस मामले की काफ़ी चर्चा हुई थी और आरोप लगाने वाली महिला को न्याय दिलाने के लिए क़ानून में बदलाव लाने की वकालत भी की गई थी.
मगर कोट्टायम के एडिशनल सेशंस कोर्ट में जब फ़ैसला सुनाया गया तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ. शुक्रवार की रात जब 289 पेज के फ़ैसले को वेबसाइट पर डाला गया, तो सामाजिक और महिला कार्यकर्ताओं के अलावा अकादमिक जगत के लोग, वकील और जानकार हैरान रह गए.
इतिहासकार जे. देविका ने बीबीसी हिंदी को बताया, ”यह फ़ैसला बलात्कार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत करने वाली महिलाओं के लिए बड़ा झटका है. यह स्पष्ट है कि जज ने पितृसत्ता के हितों के उपयुक्त तकनीकी व्याख्या की है. उनके लिए न्याय नहीं तकनीकी बारीकियां मायने रखती हैं. जब तक क़ानूनी प्रक्रियाओं में बदलाव नहीं होता, महिलाओं को महसूस होगा कि क़ानून उनके ख़िलाफ़ है.”
पंजाब और हिमाचल प्रदेश के चर्चों पर अधिकार रखने वाले जालंधर डायोसीज़ के पूर्व बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर 6 मई, 2014 को केरल की एक नन के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा.
उन पर आरोप लगा कि राज्य के कोट्टायम ज़िले के कुराविलंगड के पास सेंट फ्रांसिस मिशन होम में उन्होंने 43 साल की इस नन के साथ ऐसा किया.
इतना ही नहीं, उन पर उस महिला का 23 सितंबर, 2016 तक कुल 13 बार यौन शोषण करने का आरोप लगा.
उसके बाद 4 अप्रैल, 2019 को उनके ख़िलाफ़ लगभग 2,000 पन्नों का आरोप पत्र दाख़िल किया गया. इस आरोप पत्र में उन पर महिला को बंधक रखने, उसे धमकाने, उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने, बलात्कार करने और ताक़त का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए गए थे.
इस मामले में बहस 2019 के नवंबर में शुरू हुई. अदालत ने इस दौरान कुल 83 गवाहों में से 39 से पूछताछ की.
जज जी. गोपकुमार ने अपने फ़ैसले में कहा, ”जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब सच को झूठ से अलग करना संभव न हो, तो अकेला उपाय यही है कि साक्ष्य को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया जाए. बताए गए हालात में, ये अदालत पहले सरकारी गवाह (पीड़िता) की अकेले में दी गई गवाही पर भरोसा करके, अभियुक्त पर लगाए गए आरोपों के लिए उसे दोषी ठहराने में लाचार पाता है. इसलिए मैं अभियुक्त को उस पर लगाए गए आरोपों से बरी करता हूं.”
विशेष सरकारी वकील जितेश बाबू ने बीबीसी हिंदी को बताया, ”दिए गए विभिन्न बयानों में मामूली अंतर पाने पर पीड़िता पर संदेह किया गया जो मंज़ूर नहीं है. बयान में मामूली बदलाव से विश्वसनीयता का पता चलता है, जबकि तोते जैसे रटे बयानों को ख़ारिज़ करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट इसी नियम को मानता है. लेकिन यह अदालत यह बात समझने में नाकाम रही.”
जितेश बाबू ने कहा, ”नन की सामाजिक पृष्ठभूमि और उस संदर्भ को स्वीकार नहीं किया गया जिसके चलते उनके बयानों में अंतर हुआ. बलात्कार, यौन उत्पीड़न और यौन शोषण जैसे शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल में एक दूसरे के बदले में किया जाता है. पीड़िता ने हर बार ‘पेनेट्रेटिव सेक्सुअल इंटरकोर्स’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. लेकिन इसे पीड़िता की चूक नहीं माना जा सकता. यह पहले से तय नहीं है, बल्कि इससे उनके बयानों की विश्वसनीयता बढ़नी चाहिए थी.”
वहीं आरोप लगाने वाली नन की क़ानूनी टीम की सदस्य वकील संध्या राजू ने इस बारे में कहा: ”यौन उत्पीड़न के इस फ़ैसले में असल में महिला के नज़रिए को जगह नहीं दी गई.”
कई मायनों में ऐतिहासिक रहा ये केस
इस केस ने भारत के चर्च में महिलाओं के शोषण से जुड़े आरोपों के बारे में बताया. पहली बार बिशप रैंक का कोई अधिकारी बलात्कार के मामले में अभियुक्त के रूप में अदालत में खड़े हुए. फ्रैंको मुलक्कल 2009 में दिल्ली के सहायक बिशप थे.
इसके अलावा, मेजर आर्चबिशप कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी, भागलपुर के बिशप कुरियन वलियाकांदातिल, उज्जैन के बिशप सेबेस्टियन वडक्कल का इस केस में सामने आना एक ऐतिहासिक घटना ही है. आरोप लगाने वाली नन ने पुलिस में जाने से पहले कार्डिनल और चर्च के अन्य अधिकारियों से शिक़ायत की थी.
ये भी पहली बार हुआ कि उसी चर्च के पादरियों द्वारा शुरू किए गए ‘सेव आवर सिस्टर्स’ (एसओएस) अभियान के तहत पीड़िता नन के पांच साथी ननों ने वहां धरना दिया. असल में इन ननों ने 8 सितंबर, 2018 को बिशप फ्रैंको मुलक्कल की गिरफ़्तारी की मांग करते हुए ये धरना दिया था. इसे देख पूरा देश हैरान रह गया, क्योंकि ननों को ऐसा करते शायद ही कभी देखा गया था.
आरोप लगाने वाली नन की अपनी बहन और नन सिस्टर एल्फी ने बीबीसी हिंदी से तब धरनास्थल पर बातचीत की थी. सिस्टर एल्फ़ी ने कहा था, ”हमने कार्डिनल और दूसरे बिशपों से शिक़ायत की. हमने हमारे समूह की मदर जनरल से भी शिक़ायत की. उन्होंने कहा कि वो कैसे ‘हिज़ एक्सीलेंसी’ बिशप फ्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ क़दम उठा सकती हैं, क्योंकि वो तो उनके मातहत काम करती हैं.”
उन्होंने कहा, ”चर्च ने हमारी शिकायत को ख़ारिज कर दिया और हम पुलिस के पास गए. हमने सोचा कि अगर हम अंदर बैठेंगे तो वे हमें बाहर फेंक देंगे. इसलिए, हमने बाहर आने के बारे में सोचा क्योंकि अगर लोग हमारा समर्थन करते हैं, तो सरकार और चर्च के अधिकारियों पर भारी दबाव होगा.”
एक हफ़्ते के अंदर ही सिस्टर अनुपमा, सिस्टर एल्फी, सिस्टर जोसेफिन और सिस्टर अंचिता के नेतृत्व में प्रदर्शन पूरे केरल में फैल गया. इस प्रदर्शन में दूसरे समुदायों के साथ-साथ ईसाई समुदाय के लोग भी शामिल थे. कोच्चि में वांची स्क्वायर विरोध प्रदर्शन का ग्राउंड ज़ीरो बन गया. जो लड़कियाँ नन बनना चाहती थीं उनके माता-पिता ने बीबीसी हिंदी को बताया कि आखिर वो कितने डरे हुए हैं.
वो सभी नन जिनके प्रमुख फ्रैंको मुलक्कल हुआ करते थे, उन्हें धरने में भाग नहीं लेने की चेतावनी दी गई थी. उन्हें उन जगहों पर ट्रांसफर कर दिया गया था जहाँ से वो चर्च में शामिल हुई थीं. चर्च पर जनता का दबाव था. लेकिन इससे भी सिस्टर लुसी कलाप्पुरा की बर्ख़ास्तगी नहीं रुकी. सिस्टर लुसी कलाप्पुरा को बिशप मुलक्कल का विरोध करने की वजह से बर्ख़ास्त कर दिया गया था. सिस्टर लूसी के खिलाफ दूसरे आरोप भी थे.
पुलिस ने 27 जून, 2018 को सर्वाइवर नन की तरफ़ से दायर की शिकायत पर कार्रवाई की थी. फ्रैंको मुलक्कल को 21 सितंबर 2018 को पूछताछ के लिए बुलाया गया. तीन दिन तक चली 23 घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें औपचारिक तौर पर गिरफ़्तार कर लिया गया. ज़मानत हासिल करने से पहले उन्होंने 21 दिन जेल में बिताए. जब वो जालंधर लौटे तो उनका ऐसे स्वागत हुआ जैसे कोई उम्मीदवार चुनाव जीतकर आया हो.
मुलक्कल ने बीबीसी पंजाबी को दिए एक इंटरव्यू में पीड़िता-नन पर एक व्यक्ति के साथ संबंध बनाकर परिवार को तोड़ने का आरोप लगाया था. हालांकि, विरोध करने वाली नन ने इसके विरोध में कहा,. ”अगर हां, तो वो परिवार अब साथ क्यों है.” अदालत में गवाही देने वालों में से एक उसी व्यक्ति की पत्नी थी.
चर्च के कामकाज के तरीकों की समझ का अभाव
विशेष लोक अभियोजक बाबू का कहना है कि अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों को ‘मामूली आधार पर अविश्वसनीय’ बता दिया गया है, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा,”जांच में पाई जाने वाली छोटी-मोटी ग़लतियों में से किसी का भी मामले की जड़ से लेना देना नहीं है.”
बाबू ने एक नन जो कि दूसरी सरकारी गवाह भी थीं उनका उदाहरण दिया. बाबू ने कहा, ”अपने समूह से निकाले जाने से बचने के लिए, उन्होंने (नन) जवाब दिया कि पहले पुलिस के दबाव में बयान दिया है. इसका इस्तेमाल यह निष्कर्ष निकालने के लिए किया गया है कि वो एक अविश्वसनीय गवाह हैं.” बाबू का कहना है कि जिन परिस्थितियों में उस नन ने ये लेटर दिया उसे आंका ही नहीं गया.”
बाबू एक और पहलू बताते हैं जिसका ध्यान फ़ैसले में नहीं रखा गया. उन्होंने कहा, ”अदालत ने ये माना है कि अभियुक्त, पीड़िता पर सर्वोच्च अधिकार रखता है. उसके पास शक्तियां हैं जिससे वो पीड़िता की ज़िंदगी को प्रभावती कर सके. ऐसी स्थिति में, विरोध करने में असमर्थता और रिपोर्टिंग में देरी (बिशप के ख़िलाफ़) काफी स्वाभाविक है. इसे संदर्भ में देखा जाना चाहिए. निर्णय पूरी तरह से संदर्भ से चूका हुआ है.”
देविका इस तरह इशारा करते हुए कहती हैं,” हां, आदेश में ये नहीं देखा गया है कि कैथोलिक चर्च वाले सिस्टम में किस हद तक पितृसत्तात्मक संरचना है. जो महिलाओं और पुरुषों दोनों पर ब्रह्मचर्य लागू करती है. केवल शक्तिशाली पुरुष ही सहमति या बिना सहमति के यौन संबंध बना सकते हैं.भले ही महिला ने पहल की हो.”
बाबू ने अपने तर्क को साबित करने के लिए ये तकनीकी आधार पाया है कि आदेश को अदालत में पढ़ा या साइन नहीं किया गया था और इसके प्रकाशन में अनुचित देरी हुई थी जो दिशानिर्देशों के खिलाफ था. उन्होंने कहा, ”हम अपील दायर करेंगे.”
चर्च अथॉरिटी से अपील
इस बीच, मुंबई स्थित सिस्टर्स ऑफ सॉलिडेरिटी ने देशभर के चर्च प्रमुखों से अपील की है कि इस मामले में ”पीड़ित, साथियों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कर्तव्य चर्च का है.”
सिस्टर ऑफ सॉलिडेरिटी की तरफ से कहा गया, ”लोकल कम्युनिटी और मीडिया के एक वर्ग की ओर से फैसले को ‘चर्च की बड़ी जीत’ के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो परेशान करने वाला है. क्या पीड़िता उसी चर्च का हिस्सा नहीं है? हमें यह देखकर दुख होता है कि ये कितना असंवेदनशील है कि चर्च की एक बेटी को समुदाय द्वारा अलग-थलग और बदनाम किया गया.”
‘लाइफ ऑफ ट्रुथ’ के संपादक फादर पॉल थेलक्कट का बीबीसी हिंदी से कहना है, “जो लोग फ़ैसले से असंतुष्ट हैं वो अपील कर सकते हैं. अभी तक, हमें इसे अच्छे फ़ैसले के तौर पर स्वीकार करना चाहिए. मुझे खुशी है कि बिशप को बरी कर दिया गया है. चर्च के साथ जो हो रहा है उससे मैं भी दुखी होता हूं. ऐसे मुद्दों का समाधान करना चाहिए। और, (पीड़िता) नन और दूसरे सिस्टरों की सुरक्षा की जानी चाहिए.