नईदिल्ली I साल 2019 के बाद महाराष्ट्र के रूप में तीसरे राज्य में भाजपा का ऑपरेशन लोटस सफल रहा। हालांकि इस सूबे में पार्टी को इसके लिए करीब ढाई साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। दरअसल राजस्थान में ऑपरेशन लोटस की असफलता के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र में तख्ता पलट के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति बनाई। हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना में असंतोष भड़कने का इंतजार किया गया।
शिवसेना के दो तिहाई से अधिक विधायक पार्टी का साथ छोड़ चुके थे। मुश्किल तब और बढ़ गई जब सियासी जोर आजमाइश के बीच महाविकास आघाड़ी को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीयों ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया। संख्या बल की दृष्टि से भाजपा अपने और निर्दलीय, छोटे दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई।
उल्टा पड़ा शिवसेना का दांव
सरकार बचाने के लिए शिवसेना ने अंत समय तक बगावती गुट में फूट डालने की कोशिश की। शिवसेना के 39 विधायकों ने बगावत की थी, मगर फूट डालने के लिए इनमें से महज 16 विधायकों को नोटिस भेजा गया। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। इसके उलट अघाड़ी सरकार को समर्थन देने वाले छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों ने भी उससे किनारा कर लिया। शिवसेना सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। उद्धव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
धीरे-धीरे आगे बढ़ने की बनाई रणनीति
साल 2019 में अजित पवार के जरिये एनसीपी में फूट डाल कर सरकार बनाने और बाद में पीछे हटने पर मजबूर हुई भाजपा ने राज्य में तख्ता पलट के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति बनाई। एक तरफ सरकारी जांच एजेंसियों ने अवैध कमाई करने वाले नेताओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई की तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर असहज किया। लगातार कोशिश की गई शिवसेना में अंतर्विरोध पैदा हो सके।