नई दिल्ली। कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में अब मोनोक्लोनल एंटीबाडी का भी उपयोग किया जा सकेगा। इस तरह की एंटीबाडी कोरोना के स्पाइक प्रोटीन पर हमला करके वायरस को न्यूट्रलाइज कर सकती है। यह एंटीबॉडी कासिरिविमैब और इमडेविमैब का कॉकटेल (संयुक्त मिश्रण) है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने हाल ही में अमेरिकी कंपनी द्वारा विकसित खास तरह के मोनोक्लोनल एंटीबाडी के आपातकालीन इस्तेमाल को मंजूरी दी है।

यहां पर यह बता देना जरूरी है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कोरोना पॉजिटिव होने पर उन्हें भी इलाज के दौरान यह दवा दी गई थी। मोनोक्लोनल एंटीबाडी प्रयोगशाला में तैयार किया जाने वाला प्रोटीन है। यह शरीर के किसी हिस्से को नुकसान पहुंचाए बगैर वायरस को नष्ट कर सकता है। मोनोक्लोनल एंटीबाडी सामान्य तौर पर इंसान की किसी एंटीबाडी, चूहों के कोशिकाओं की एंटीबाडी या दोनों के संयुक्त एंटीबॉडी को क्लोन करके लैब में तैयार की जाती है।

एम्स के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल ने कहा कि ऐसा मानना है कि अगर किसी खास एंटीबाडी से बीमारी को टारगेट किया जाए तो उस बीमारी को ठीक किया जा सकता है। इसलिए विभिन्न बीमारियों को टारगेट करके अलग-अलग तकनीक से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित होती रही हैं। कैंसर के इलाज में भी टारगेट थेरेपी के तौर पर कई तरह की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है।

अमेरिका में हो चुका है इसका ट्रायल

कोरोना के इलाज में अभी टोसिलिजुमैब इस्तेमाल की जा रही है। यह भी एक तरह की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है। इसे किसी दूसरी बीमारी के इलाज के लिए बनाया गया है, लेकिन कोरोना के संक्रमण के दौरान होने वाले शरीर के आंतरिक हिस्से में होने वाली सूजन को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। कासिरिविमैब और इमडेविमैब को कोरोना को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। अमेरिका में इसका ट्रायल भी हुआ है। यह एंटीबाडी हल्के और कम गंभीर संक्रमण से पीडि़त मरीजों को दी जाती है। जिससे शुरुआत में ही संक्रमण को दबाया जा सके ताकि बीमारी गंभीर ना होने पाए।

आसान नहीं होगा इसका इस्तेमाल

यह दवा इंजेक्शन के रूप में इस्तेमाल होती है। इसे सिर्फ हल्के या बहुत कम गंभीर मरीजों को ही दिया जाता है। हालांकि खास बात यह है कि देश में हल्के संक्रमण वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में जरूरतमंद मरीजों की पहचान कर उन्हें यह दवा देना आसान नहीं होगा। दवा की उपलब्धता भी बड़ी चुनौती होगी।