दरभंगा
घर में 20 घंटे तक पड़ा रहा कोरोना पॉजिटिव का शव, पड़ोसियों से मिन्नतें करती रही पत्नी-बेटियां, मगर कोई नहीं आया आगे
कोरोना वायरस जैसे-जैसे भयावह रूप ले रहा है, वैसे-वैसे लोगों की इंसानियत खत्म होती जा रही है। ताजा मामला दरभंगा जिले के नगर थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर 27 के गंगासागर मुहल्ले का है। यहां शनिवार को 45 साल के कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत हो गई। मौत के 20 घंटे बाद भी उसका शव घर के अंदर ही पड़ा रहा। कबीर सेवा संस्थान के सदस्यों ने इस शव का अंतिम संस्कार किया।
पड़ोसियों को जब मृतक के बारे में पता चला तो उन्होंने दरवाजे बंद कर लिए। अंत में जब इसकी सूचना समाजसेवी नविन सिन्हा तक पहुंची तो उन्होंने परिवार को मदद पहुंचाने की कोशिश शुरू की। घर में मृतक की पत्नी और तीन बच्चे थे। पत्नी और बेटियां रोती-बिलखती हुईं लगातार लोगों और जिला प्रशासन से शव उठाने की गुहार लगाती रहीं लेकिन कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया।
मृतक का शव शुक्रवार की रात और शनिवार को दिन भर घर में ही पड़ा रहा। इसके बाद कबीर सेवा संस्थान के सदस्य और समाजसेवी नवीन सिन्हा ने उनकी मदद की कोशिश शुरू की। आखिरकार डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम और नगर आयुक्त मनेश कुमार मीणा के आदेश पर एक स्वास्थ्यकर्मी मृतक के घर पहुंचा और उसने शव को सैनिटाइज किया।
इसके बाद समाजसेवी नवीन सिन्हा ने एक अन्य के साथ मिलकर मृतक के शव को दो मंजिला मकान से उतारकर एंबुलेंस में रखा। इस दौरान आस-पड़ोस के लोगों के घरों के दरवाजे बंद रहे। कोई भी मदद के लिए नहीं आया। फिर नवीन सिन्हा ने ही शव का अंतिम संस्कार करके मानवता की मिसाल पेश की।
कोरोना के डर से अपनों ने किया किनारा तो मुस्लिम भाइयों ने हिंदू महिला की अर्थी को दिया कंधा
इमामगंज के तेतरिया के दिग्विजय प्रसाद की 58 वर्षीया पत्नी पार्वती देवी की मौत लंबी बीमारी के कारण घर पर ही हो गयी। मौत की खबर गांव में फैलते ही सन्नाटा पसर गया। ग्रामीणों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिये। कोई उसकी अर्थी को कंधा देने को तैयार नहीं था। रानीगंज के मुस्लिम युवाओं को जब इसकी जानकारी मिली, तब उन लोगों ने तय किया कि वे उस महिला की अर्थी को कंधा भी देंगे और अंतिम संस्कार भी करेंगे।
इन युवाओं ने हिंदू रीति-रिवाज से अर्थी तैयार की और श्मशान तक ले गये। वहां चिता सजायी और दाह संस्कार कर सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश की। अंतिम संस्कार में शामिल मो. सगीर आलम और मो. रफीक मिस्त्री ने कहा- रमजान में यह पवित्र कार्य करने का अवसर मिला। मन को बड़ा सुकून मिला। अंतिम संस्कार में मो. सुहैल, फारूक उर्फ लड्डन, हाफिज कलीम, हेरार आलम, मो.शारिक, मो.उमर और मृत महिला के बेटे निर्णय कुमार, विकास कुमार और बसंत यादव शामिल हुए।