स्वास्थ्य मंत्री खुद जता चुके हैं असहमति

रायपुर|

रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने की छत्तीसगढ़ सरकार की योजना का विरोध शुरू हो गया है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने इस योजना से अपनी स्पष्ट असहमति सार्वजनिक कर दिया है। अब छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन भी विरोध में खड़ा हो गया है। संगठन ने आज कहा, वे सरकार के ऐसे किसी कदम का पुरजोर विरोध करते हैं।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक मंडल सदस्य आलोक शुक्ला ने कहा, जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देना एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है। इन सेवाओं को पाने का हक संवैधानिक अधिकार भी है। लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है तो सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करना ही एकमात्र तरीका है। आंदोलन का कहना है, राज्य सरकार का स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण का फैसला कल्याणकारी राज्य कि अवधारणा के बिलकुल विपरीत है। सरकार के इस कदम से प्रदेश की जनता कर्ज के बोझ के डूब जाएगी। छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम नीति आयोग के देश के सभी जिला अस्पतालों को निजी मेडिकल कॉलेज को देने के निर्णय से भी ज्यादा खतरनाक साबित होगा। छत्तीसगढ़ सरकार, केंद्र सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की नीतियों का समर्थन करती हुई दिखाई दे रही है।

कोरोना में सरकारी अस्पतालों ने ही जान बचाई

आंदोलन की ओर से कहा गया, कोरोना महामारी के समय स्वास्थ्य तंत्र बड़े पैमाने पर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में विफल रहा। इसी दौरान अपनी तमाम कमियों के बावजूद भी सरकारी अस्पतालों ने लोगों की जान बचाई है। इसके उलट यह भी देखा गया कि किस प्रकार निजी अस्पतालों ने इलाज के नाम पर लूट मचाई। बहुत से अस्पतालों ने स्वास्थ्य बीमित लोगों का भी इलाज नही किया।

कांग्रेस को चुनावी वादे की भी याद दिलाई

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सरकार को विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए वादे की भी याद दिलाई। आंदोलन के नेताओं ने कहा, कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र मे स्वास्थ्य सेवाओं पर जोर देते हुए एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत करने का वादा किया था। इसमें आवश्यकतानुसार नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करने की बात थी। कुछ कांग्रेस शासित राज्यों ने तो स्वास्थ्य अधिकार कानून तक की बात की थी।

आंदोलन ने यह मांग रखी

  • स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के इस निर्णय को तुरंत वापस ले और स्वास्थ्य को उद्योग का दर्जा देने की जगह स्वास्थ्य अधिकार को मजबूत करें। गांव मे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करें।
  • प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों मे चिकित्सकों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को दूर करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने का प्रयास करे। केंद्र सरकार की निजीकरण की नीतियों का समर्थन कर उन्हे आगे न बढ़ाएं।

सरकार ने अनुदान देने की तैयारी की है

दरअसल 27 जून को जनसंपर्क विभाग ने बताया था, सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने जा रही है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में निजी अस्पताल खोलने पर अनुदान दिया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उद्योग विभाग को 10 दिन में अनुदान का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। सरकार का सोचना है कि इस कदम से ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी।

स्वास्थ्य मंत्री ने दो टूक शब्दों में जताई है असहमति

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने दाे टूक शब्दों में इस योजना से अपनी असहमति जता दिया है। उन्होंने कहा, “मैं इससे सहमत नहीं हूं। मुझसे किसी ने इसपर चर्चा भी नहीं की है। अगर निजी क्षेत्र नि:शुल्क काम करेगा तो फिर ठीक है। आप ग्रांट लीजिए और पब्लिक से कोई पैसा मत लीजिए वह बात तो समझ में आती है। लेकिन आप पब्लिक का पैसा किसी निजी संस्था को देकर फिर कहिए की पब्लिक से भी पैसा लो तो यह नीति बिल्कुल उचित नहीं है।’