नई दिल्ली।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इस महामारी से सैकड़ों मरीजों की जान जा रही है। कहीं ऑक्सीजन की कमी से तो कहीं, जीवन रक्षक दवाओं की कमी के कारण। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शवों के अंतिम संस्कार के लिए लोगों को 20 घंटे तक का इंतजार करना पड़ रहा है।
दिल्ली के श्मशान घाटों के आस-पास, फर्श पर आपको शव लावारिस अवस्था में पड़े हुए मिलेंगे। अंतमि संस्कार के लिए आए परिजनों के वाहनों की लंबी कतारें इस बात की गवाही दे रही है कि स्थिति कैसी है। ऐसी तस्वीरों दिल्ली की आत्मा को हिला देने वाली है।
मेस्सी फ्यूनरल के मालिक विनीता मेस्सी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, “मैंने अपने जीवन में पहले कभी ऐसी बुरी स्थिति नहीं देखी थी। लोग अपने प्रियजनों के शवों के साथ एक जगह से दूसरे जगह भटक रहे हैं। लगभग दिल्ली के सभी श्मशान घाटों में शवों से बाढ़ आ गई है।” विनीता मैसी, मालिक मैसी फ्यूनरल, ने पीटीआई को बताया।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस महीने 3601 लोगों की कोरोना से मौत हुई है। इनमें से पिछले सात दिनों में 2,267 लोगों की जान गई है। ये आंकड़े शहर को आतंकित कर रहे हैं और पीड़ा दे रही है। जैसे कि वायरस से किसी प्रियजन को खोने का आघात सहने लायक नहीं होता है, उससे अधिक दुख उनका उचित अंतिम संस्कार नहीं कर पाने पर होता है। रिश्तेदार शवों को लेकर श्मशान पहुंच रहे हैं, केवल उन्हें विदा कर रहे हैं। आघात उन लोगों के रिश्तेदारों के लिए कम नहीं है जो अन्य बिमारियों से मरे हैं या फिर उनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई है।
पश्चिमी दिल्ली के अशोक नगर के एक युवा उद्यमी अमन अरोड़ा ने सोमवार दोपहर अपने पिता एमएल अरोड़ा को दिल का दौरा पड़ने से खो दिया। अमन ने कहा, “जब वह सीने में तकलीफ महसूस करने लगे तो हमने उन्हें कई निजी अस्पतालों में भर्ती कराया लेकिन वहां के मेडिकल स्टाफ द्वारा भी उनकी जांच नहीं की गई। आखिरकार उन्होंने मांग की कि हम एक कोविड-नेगेटिव रिपोर्ट तैयार करें।”
सोमवार दोपहर पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर श्मशान में कर्मचारियों द्वारा अमन को अंतिम संस्कार करने के लिए मंगलवार सुबह तक इंतजार करने के लिए कहा गया था। जब अमन को पता चला कि फरियाद करने का कोई मतलब नहीं है, तो उसने अपने पिता के शव को सड़ने से रोकने के लिए रेफ्रिजरेटर की व्यवस्था की। उन्होंने कहा, “जब कोई जगह नहीं थी तो मैं क्या कर सकता था? हमने शव को एक किराए के फ्रिज में रखा और आज (मंगलवार) हम जल्दी आ गए। अपनी बारी का इंतजार करते हुए और भी कई लोग चुपचाप शवों पर लिपटे हुए थे।”