पिथौरा ,  (नव ऊर्जा)  महज 500 रुपए दिव्यांग पेंशन लेने 2 किलोमीटर दूर अपने गांव से घिसटते हुए एक युवक पिथौरा के स्थानीय भारतीय स्टेट बैंक शाखा पहुंचता है. इस युवक की मजबूर मां बैंक सिस्टम से तंग आ चुकी हैं. प्राप्त जानकारी अनुसार इस संबंध में प्रेस रिपोर्टर ने स्थानीय स्टेट बैंक प्रबंधक से चर्चा का प्रयास किया पर उन्होंने मोबाइल रिसीव ही नहीं किया. नगर से मात्र दो किलोमीटर दूर स्थित ग्राम लाखागढ़ का स्व. असमन कोसरिया का परिवार अपने घर में पुत्र संदीप के जन्म से ही खासा परेशान है. असमन अपने जीते तक करीब 10 साल से अधिक अपने दिव्यांग बच्चे को लेकर पत्रकारों के सहयोग से नेताओं और अफसरों के कार्यालयों के चक्कर लगाता हुआ थक गया और कम समय में ही बीमार होकर दुनिया से विदा हो गया.

500 रूपए पेंशन लेने 2 किमी दूर गांव से बैंक तक घीसटती जिंदगी,
शर्मसार करते बैंक अधिकारियों की मजबूरी,
मजबूर जनता की पीड़ा दूर करे सरकार,
प्रेस मीडिया को अधिकारी अपना नंबर नहीं देते तो मजबूर जनता को क्यों?

*शासकीय संस्थानों में समय की अनुपलब्धता जनता के लिए जी का जंजाल*
“काश कोई दिव्यांग बच्चे किसी बैंक या अन्य जिम्मेदार अधिकारी के घर में होते तो समझ आती दिव्यांग के मजबूर मां-बाप या भाई होने की पीड़ा”

जनता मजबूर है तैश में अधिकारी, कब आएगी जनता की बारी,
अक्सर देखा गया है कि भुक्तभोगी जनता उन घमंडी अधिकारियों का मोबाइल नंबर लेना भी चाहें तो अपना संपर्क नंबर नहीं देते, कोई कार्य के संबंध में पब्लिक को अधिकारी के कार्यालय तक भले ही घसीटकर जाना पड़े, उन्हें क्या पड़ता है सरकारी तंत्र इतनी मजबूत है कि उनका कोई एक बाल भी बांका नहीं कर सकता, भले ही सरकारी सिस्टम जनता के शरीर से खाल ही क्यों न उतार ले,
वर्तमान में प्रायः सभी कार्यालयों के सिस्टम खासकर बैंकों में हितग्राही जनता का नंबर मौजूद रहता है परन्तु किसी भी कार्यालय से हितग्राही जनता को काल नहीं जाता बल्कि पिछले दो वर्ष से चली आ रही कोरोना संक्रमण के महामारी समय पर भी विभिन्न शासकीय कार्यालयों में जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा भीड़ जुटाते दिखाई देता रहा है।

वहीं दिव्यांग मात्र तरल खाद्य पर ही जीवित है संदीप के पिता असमन ने जीवित रहते काफी चक्कर लगाने के बाद भी पुत्र संदीप का उपचार नहीं करवा पाया बल्कि उन्हें डॉक्टरों ने बताया कि संदीप की जीभ ज्यादा मोटी है जिसका उपचार सम्भव नहीं है लिहाजा उसे तरल पर ही जीवित रखा जा सकता है. बाद नियमानुसार उसे दिव्यांग पेंशन योग्य समझते हुए उसका नाम जोड़ा गया जहां से उसे 500 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है. इस पेंशन में भी अब अड़चन आने लगी है. पूर्व में ज़ब संदीप छोटा था और पिता जीवित थे तब उसे पाकर बैंक ले जाकर पेंशन ले आते थे और बच्चे के लिए कुछ आवश्यक सामग्री खरीदते थे पर अब संदीप 25 साल का हो चुका है. पिता के निधन, कमजोर वृद्ध मां की असमर्थता और पैसों की अति आवश्यकता ने मजबूर संदीप की मां पुन्नी को अपने पुत्र को घिसट कर बैंक तक लाना मजबूरी हो गई है. इतने मजबूर मां-बेटा को देखकर भी बैंक कर्मियों, अफसरों का मन नहीं पसीजता और वे मां के अकेले आने पर उन्हें पुनः भेजकर बच्चे को बैंक में उपस्थित करने का आदेश सुना देते हैं. जिससे अब यह मजबूर मां परेशान हो गई हैं. पुन्नी चाहती हैं कि बैंक के ग्राहक सेवा केंद्र द्वारा उन्हें उसके अकेले आने पर या घर से संदीप का अंगूठा लगवा कर उन्हें अनुमति दें. बैंक अधिकारी मोबाइल रिसीव नहीं करते उक्त मामले में इस प्रतिनिधि ने स्थानीय स्टेट बैंक के प्रबंधक से चर्चा करने उनके मोबाइल में लगातार कॉल किया पर कॉल रिसीव नहीं किए जाने से चर्चा नहीं हो पाई.