कोरबा/कटघोरा:- कटघोरा वनमंडल में लाखों खर्च कर पौधारोपण किया गया है। और जिसके लिए बकायदा महाउत्सव भी मनाया गया। पौधारोपण कार्यक्रम मनाने के लिए जनप्रतिनिधियों को भी बुलाया गया। जिस कार्यक्रम के आयोजन में भी हजारों रूपये खर्च किया गया और यह संदेश दिया गया कि पर्यावरण को संतुलन करने के लिए पौधा लगाना पड़ेगा, कोरोना काल में आपने देखा होगा कि ऑक्सीजन की कितनी किल्लत हो गई थी, वगैरह… वगैरह…। इस प्रकार के बड़े लंबे- चौड़े भाषण सुनने को भी मिला। लेकिन गौर करें तो यह सब शासन की राशि को बर्बाद करने का तरीका है। ऐसा करके अधिकारी- कर्मचारी अपनी जेब में मोटी रकम डाल लेते हैं व धरातल पर नाम मात्र का काम होता है। यदि कटघोरा वनमंडल द्वारा लगाये गये पौधों में से 50 प्रतिशत भी पौधे जीवित रहे तो यह वनमंडल हरियाली से अच्छादित हो जाएगा। लेकिन यहां तो बमुशक्कित गिनती के पौधे ही जीवित रह पाते है। तथा शेष उचित देखरेख के अभाव में नष्ट हो जाते है। हम दावे के साथ तो ये भी नहीं बोल सकते कि इस साल दो पौधा जीवित है।
कटघोरा वनमंडल द्वारा बीते वर्ष पौधारोपण का कार्य करवाया गया। साथ ही ट्री गार्ड भी लगवाया गया था। ताकि उन पौधों को जानवर नुकसान न पहुंचा सके। इसके लिए वनमंडलाधिकारी ने लाखों खर्च किये। लेकिन लाखों खर्च करने के बाद भी वन विभाग द्वारा रोपित पौधों को जीवित नहीं रख पाना। फिर ऐसे में शासन का लाखों खर्च करने का क्या मतलब है। कटघोरा वनमंडल के अधिकारी- कर्मचारी पौधारोपण व ट्री गार्ड लगाने के समय तो बड़े तामझाम के साथ दिखाई दिए, उसके बाद शायद उस जगह जाकर देखे ही नहीं कि क्या हाल है रोपे गए उन पौधों का। अगर वन विभाग द्वारा लगाये गये पौधे और ट्री गार्ड की उचित देखरेख किया जाता तो शासन का लाखो रुपए इस कार्य मे बर्बाद नही होता। जो चंद महीने में ही बदहाल हो चले। लेकिन कटघोरा वनमंडल के लापरवाह अधिकारियों को तो बस अपने कर्तव्यों के निर्वहन में खानापूर्ति करना रहता है। बांकी अपने कार्यालय के वातानुकुलीन कक्ष में बैठकर केवल कागजी घोड़ा दौड़ाई जाती है। वैसे भी पैसा तो जनता का है न जिसे वे टेक्स के रूप में शासन को देते है। जिस पैसे का दुरूपयोग मामले में कटघोरा वनमंडल के अधिकारी अव्वल है। इस वनमंडल के अधिकारियों को केवल पौधरोपण में ही नही वरन अन्य निर्माण कार्यों में भी गोलमाल करने में महारथ हासिल है। जहां नौकरशाहों की कार्यशैली, स्टापडेमों का घटिया निर्माण, तालाब निर्माण, भुगतान राशि, विधानसभा को गलत जानकारी देने जैसे मामलों को लेकर यह वनमंडल अपनी अलग पहचान बना चुका है। जहां लापरवाह और भ्रष्ट्र कार्यशैली की लंबी फहेरिस्त सामने आने के बाद भी छूट पर छूट मिलता आ रहा है। जबकि दोषी अधिकारी पर विभागीय कार्यवाही होना चाहिए। ताकि आगे जाकर शासकीय राशि का दुरुपयोग न हो सकें और गुणवत्तापरख निर्माण कार्य हो। किंतु अफसोस कि वनमंत्रालय की खामोशी कटघोरा वनमंडल के भ्रष्ट्र अधिकारी के कुकृत्य हौसले को बुलंद करता है।