Rajasthan/पाली। पाली की पीनल अब साध्वी प्राज्यदर्शा श्रीजी और यशवंती साध्वी हेमयुग प्रभा के नाम से जानी जाएगी। दोनों बेटियों ने सांसारिक जीवन छोड़कर दीक्षा ले ली है। इस दौरान दोनों के माता-पिता के आंसू निकल गए। घर वालों ने दुल्हन की तरह बेटियों को सजाया। खूब दुलार कर हमेशा के लिए विदा किया।
दीक्षा के बाद साध्वियां बोलीं- भगवान आदिनाथ के साथ वैलेंटाइन डे मनाने के लिए संयम पथ पर अग्रसर हो चुकी है। आठों कर्मों की बेड़ियां तोड़ मोक्ष गति को प्राप्त करना ही उनका जीवन का लक्ष्य हैं। दोनों ने जैन संतों और हजारों लोगों की मौजूदगी में सोमवार शाम को परिवार का त्याग कर दिया था।
बेटी को हमेशा के लिए विदा करते माता-पिता रोने लगे
पाली के देवजी के बास में रहने वाले मनोज लोढ़ा की बेटी ने संयम पथ अपनाया है। 21 साल की पीनल लोढ़ा ने गुजरात के शंखेश्वर तीर्थ में जैन संतों के सान्निध्य में दीक्षा ली हैं। पीनल को माता-पिता ने ऐसे विदा किया, जैसे शादी हो। दुल्हन की तरह लाल जोड़ा पहनाकर श्रृंगार किया था। धूमधाम के साथ शंखेश्वर तीर्थ लेकर गए थे। फूलों से स्वागत किया गया था।
पीनल खुशी से नाचने लगी और कहने लगी मुझे इस संयम पथ पर आगे चलने की आज्ञा दे। खुशी और गम के इस माहौल में घर वाले फूट-फूटकर रोने लगे। माता-पिता ने गले लगकर आखिरी बार बेटी को दुलारा। अपने परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए उसे विदा कर दिया। इसके बाद दीक्षा की रस्में हुईं। लाल जोड़े में सजी पीनल ने सफेद वस्त्र धारण किए और केश लोचन किया गया।
साधु-संतों के प्रवचन सुन मन में वैराग्य आया
पीनल ने बीए सैकेंड ईयर तक पढ़ाई की है। शुरू से ही धार्मिक कार्यक्रमों में जाती रही थी। ग्रंथों को पढ़ने का भी हमेशा से शौक रहा था। जैन साधु-संतों के प्रवचन सुन मन में भी वैराग्य धारण करने की भावना जागी। अपनी इच्छा से पापा मनोज और मम्मी सीमा लोढ़ा को बताया था। उन्होंने साथ दिया और दीक्षा लेने की आज्ञा दी थी।
यशवंती को मिला साध्वी हेमयुग प्रज्ञा नाम
पाली के खौड़ के बास की रहने वाली 32 साल की यशवंती कांठेड़ ने भी सोमवार को परिवार को छोड़कर दीक्षा ली है। उन्हें रानी में अष्टापद जैन तीर्थ में दीक्षा दी गई। दीक्षा से पहले ढोल-नगाड़ों के साथ तीर्थ पर ले जाया गया था। घर से विदा करते हुए परिवार वाले गले मिले थे। धूमधाम से दीक्षा स्थल पर लेकर गए थे।
दीक्षा के दौरान जैन संत हेमप्रज्ञ सुरीश्वर, मणिप्रभ सुरीश्वर, नीति सूरीश्वर, महेन्द्र सुरीश्वर, मणिप्रभ विजयकी निश्रा मौजूद रहे। यशवंती कांठेड़ अब साध्वी हेमयुग प्रभा के नाम से जानी जाएगी। इस मौके पर यशवंती काफी खुश नजर आई। साध्वी के रूप में बेटी के सामने आने पर माता-पिता ने आशीर्वाद लिया।
10 साल से वैरागी जीवन अपनाने की तैयारी कर रही थी
मुमुक्षु यशवंती कांठेड़ ने बीए तक की पढ़ाई की हैं। पिता रोशनलाल कांठेड़ शहर के जाने-माने कपड़ा व्यवसायी है। यशवंती पिछले 10 साल से वैरागी जीवन अपनाने की तैयारी कर रही थी। रात्रि भोजन का त्याग, बाजार की खाद्य सामग्री व मिठाइयों का त्याग कर दिया था। गर्म पानी पीकर पूरे समय जैन आगम के अध्ययन कर रही थी।
हाल ही में जीरावला मित्र मंडल रोटरी बैंक के तत्वावधान में आयोजित एक हजार यात्रियों की तीर्थ यात्रा में शत्रुंजय तीर्थ, गिरनार, शंखेश्वर, जीरावला, महुडी, कुंभरिया आदि तीर्थों की यात्रा भी की थी। धार्मिक शिक्षा में पंच प्रतिक्रमण सार्थ, नवस्मरण, चार प्रकरण सार्थ सहित कई तप व धार्मिक यात्राएं की।
सांसारिक जीवन छोड़ने के लिए की कठोर तपस्या
साध्वी हेमयुग प्रभा ने कहा कि सांसारिक जीवन छोड़ना सरल नहीं हैं। कठोर तपस्या करनी पड़ती हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए वैराग्य मार्ग सर्वश्रेष्ठ हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में जैन समाज बंधु मौजूद रहे।
ऐसे होती है दीक्षा की रस्म
दीक्षा के दौरान सबसे पहले रजोहरण (ओगा) दीक्षार्थी को दिया जाता है। वह अपने सांसारिक कपड़े व गहनें आदि का त्याग कर करती हैं। फिर केश लोचन होता है। सांसारिक वस्त्र त्याग कर सफेद वस्त्र धारण करती हैं। देववंदन, गुरु वंदन करती हैं। जैन संत गुरु दीक्षा का पाठ सुनाते हैं। जैन साध्वियां केसन की विधि करती हैं। फिर सांसारिक लोग वैराग्य पथ पर अग्रसर होने वाली साध्वी की वंदना करते हैं।