आगरा/मथुरा। अगाध आस्था, अलौकिक नजारा और अवर्णनीय पल। भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर कान्हा की धरा पर हाल कुछ ऐसा ही था। घड़ी की सुई रात 12 बजे की ओर बढ़ रही थी और इधर श्रद्धालुओं में व्याकुलता। अपने आराध्य के जन्मोत्सव के पलों का साक्षी बनने के लिए हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल था। रात गहराती गई और श्रद्धा की हिलोरें उठती रहीं। ये लाला के जन्मोत्सव की खुशियां थीं, जो रात होने का अहसास ही नहीं हो दे रही थीं। शुक्रवार रात 12 बजे शंख व घंटे की ध्वनि के बीच वैदिक मंत्रों के साथ सौ गायों के दूध से कान्हा का अभिषेक हुआ, तो ऐसा लगा मानो पूरा बैकुंठ ही ब्रज धरा पर उतर आया। जमीं से आसमान तक जय कन्हैया लाल की गूंज उठा।
5249वें वर्ष में प्रवेश
लाला का जन्म के 5249वें वर्ष में प्रवेश हुआ तो मानों कण-कण धन्य हो गया। लीलाधर के आगमन को लेकर सुबह से पूरे देश में घर-घर खुशियां पसरी थीं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर सुबह छह बजे मंगला आरती के बाद पुष्पांजलि अर्पित की गई। भागवत भवन में युगल सरकार ने सारंग शोभा पुष्प बंगले में विराजमान होकर सिल्क, रेशम और जरी से तैयार श्रीहरिकांता पोशाक धारण कर दर्शन दिए, तो श्रद्धालु छवि निहारते रह गए। रात गहराती गई और उल्लास चरम की ओर बढ़ता रहा। श्रीकष्ण जन्मस्थान के पूरे परिसर में सुगंधित दृव्य का छिड़काव किया गया।
श्रीगणेश से जन्मोत्सव का शुभारंभ
रात 11 बजे श्री गणेश, नवगृह स्थापना और पूजन शुरू हुआ। 11.55 बजे तक कमल पुष्प एवं तुलसीदल से सहस्त्रार्चन हुआ। घड़ी की सुई 12 बजे की ओर बढ़ रही थी और लाला के आगमन को लेकर व्याकुलता। ठीक 11.59 बजे प्राकट्य दर्शन के लिए पट बंद हो गए। ये एक मिनट का पल श्रद्धालुओं के लिए मानों एक घंटे की तरह कटा। 12 बजते ही कन्हाई के चलित श्रीविग्रह को मोरछल आसन पर विराजमान करा भागवत भवन लाया गया। रजत कमल पुष्प पर विराजे आराध्य का कामधेनु गाय के प्रतीक ने दुग्धाभिषेक किया।