नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि राज्य अपने यहां जनसंख्या के आधार पर हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकते हैं। जनसंख्या, धार्मिक और भाषाई आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने और उसको लेकर दिशानिर्देश तय करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामा दाखिल कर यह बात कही है। इस मामले में अब सुनवाई 10 मई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियिम, 1992 के तहत अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की केंद्र सरकार की शक्ति के खिलाफ एक याचिका पर स्पष्ट जवाब देने के लिए केंद्र को और समय दिया। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से समय मांगते हुए कहा था कि उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से दाखिल किया गया हलफनामा अभी पढ़ा नहीं है। कोर्ट उन्हें हलफनामा पढ़ने और बहस करने के लिए कुछ समय दे।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की तरफ से दाखिल हलफनामा तो आज अखबारों में छपा है और सालिसिटर जनरल ने अभी उसे पढ़ा नहीं है। इस पर मेहता ने कहा कि कुछ जनहित याचिकाओं के दस्तावेज ला आफिसर तक पहुंचने से पहले मीडिया तक पहुंच जाते हैं। कोर्ट ने मेहता को चार हफ्ते का समय देते हुए कहा कि मामले में दाखिल अन्य अर्जियों का भी केंद्र सरकार तब तक जवाब दाखिल कर दे। इसके बाद दो सप्ताह का समय याचिकाकर्ता को प्रतिउत्तर दाखिल करने के लिए देते हुए मामले को 10 मई को सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया।

भाजपा नेता व वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका में राज्य की जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने और अल्पसंख्यकों की पहचान के बारे में दिशानिर्देश तय किए जाने की मांग के अलावा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम 2004 की धारा 2 (एफ) को भी चुनौती दी गई है। कहा गया है कि इसमें केंद्र को असीमित शक्तियां दी गई हैं।

इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि कानून के मुताबिक राज्य सरकारें अपने राज्य में हिंदुओं समेत धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र ने अपने राज्य में यहूदियों को अल्पसंख्यक घोषित किया है। यह विषय समवर्ती सूची में आता है इसलिए इस पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का हक है।

केंद्र ने कानून का किया है बचाव

केंद्र ने कानून की तरफदारी करते हुए कहा कि यह मनमाना नहीं है। धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा सरकार की योजनाओं के लिए पात्रता की गारंटी नहीं देता। योजनाएं अल्पसंख्यकों के बीच आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर और वंचितों के लाभ के लिए हैं। इन्हें गलत नहीं ठहराया जा सकता।