मंदिर परिसर में किया चंदन का पौधारोपण
कोरबा/पाली:-राजा जाज्वल्यदेव के पुत्र विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा स्थापित पाली के प्राचीन शिवमंदिर में सावन के पहले सोमवार गौ- सेवा आयोग के सदस्य प्रशांत मिश्रा जलाभिषेक करने पहुँचे जहां उन्होंने शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, श्रीफल अर्पण कर विधि- विधान के साथ भगवान शिव की पूजा- अर्चना की तथा जिसके बाद मंदिर परिसर में चंदन का पौधा रोपित किया। इस दौरान उनके साथ कोरबा जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव सुरेश गुप्ता, ब्लाक कांग्रेस कमेटी उपाध्यक्ष पाली अजय सैनी, पाली- ताना खार विधायक के निज सहायक अनिल गुप्ता, यूथ कांग्रेस जिला सचिव वसीम खान, पाली नगर पंचायत पार्षद रोहित प्रजापति, सहित यूथ कांग्रेस पदाधिकारी/कार्यकर्ता अजय प्रजापति, सुनील लहरे, हर्ष मानिकपुरी उपस्थित रहे। वहीं श्री मिश्रा ने श्रावण माह के महत्त्व को लेकर बताया कि हिन्दू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव के विशेष महिमा का माह है और जिसका विशेष महत्त्व भी है क्योंकि पैराणिक कथा के अनुसार देवी सती ने अपने दूसरे जन्म में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए श्रावण महीने में ही कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न किया था इसलिए यह माह शिव जी को साधना, व्रत करके प्रसन्न करने का माना जाता है। श्रावण शब्द श्रवण से बना है, जिसका अर्थ है सुनना अर्थात सुनकर धर्म को समझना इसलिए मान्यता के अनुसार सावन माह में व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना करने तथा विधि- विधान से पूजा और आराधना करने पश्चात भोलेनाथ को उनके प्रिय चीजों का भोग लगाने व अभिषेक करने के बाद सच्चे मन से मुरादे मांगने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
बता दें कि जिले के पाली मुख्यालय में मुख्यमार्ग किनारे स्थित ऐतिहासिक केंद्रबिंदु का वाण वंश के शासक विक्रमादित्य द्वारा स्थापित 870- 900 ईसवी सदी का पूर्वमुखी शिवमंदिर जहां सूर्य की किरणें सबसे पहले पड़ती है, अपने आप मे एक उदाहरण है। आदिकाल में विक्रमादित्य द्वितीय ने अनेक शिवमंदिरों का निर्माण कराकर उनके संरक्षण का प्रयास किये थे, जहां पाली का शिवमंदिर भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। प्राचीन खूबियों से चर्चित और पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण इस महादेव मंदिर में सौंदर्यबोध और उस काल की विकसित कला के दर्शन होते है तथा मैथुनकला मूर्तियों की अधिकता और उनका अंकन शाश्वत रूप से इस बात को निषेचित कर देते है कि यहाँ भाई- बहन एक साथ ना पहुँचे। ऐसी मूर्तियों के अलावा शिव- पार्वती, वराह, सरस्वती, गणेश और अन्य देवी- देवताओं की मूर्तियां मंदिर की दीवारों पर उरेकित है जो पाषाण युग पर आधारित है। लाल रंग के विशेष पत्थर से पूरे मंदिर को आकार दिया गया है एवं इनके जुड़ाव के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है वह वास्तव में अपनी ओर मनमुग्ध करने वाला है। कलात्मक रूप से अद्वितीय कहे जाने वाले इस मंदिर के सामने लगभग 22 एकड़ में फैला विशालकाय नौकोनिया के नाम से जाना जाने वाला तालाब भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर में भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षण के नाम पर दो चौकीदार और विभिन्न धाराओं में होने वाली सजाओं का उल्लेख एक बोर्ड में किया गया है जो यहाँ पहुँचने वाले पर्यटकों को यह बताता है कि मंदिर का इतिहास कितना पुराना है एवं इसके साथ होने वाली छेड़छाड़ लोगों को कहाँ से कहाँ तक पहुँचा सकती है। सावन माह एवं महाशिवरात्रि पर्व पर इस प्राचीन मंदिर में भक्तों का तांता लगता है और आसपास का वातावरण भोलेनाथ के जयकारे से गुंजायमान रहता है साथ ही यहां फरवरी माह महाशिवरात्रि पर्व के दिन से ही नौ दिवसीय भव्य मेला का आयोजन रहता है। हालंकि पर्यटक गाइड सुविधा और संसाधन अबतक यहाँ की पहुँच से बाहर है फिर भी काफी दूर- दूर से लोग इस प्राचीन मंदिर को देखने एवं शिवलिंग दर्शन के लिए आते है।