नई दिल्ली: देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने बुधवार को कहा कि चुनावों के जरिए किसी को बदलने का अधिकार “निर्वाचितों के अत्याचार के खिलाफ गारंटी” नहीं है। उन्होंने कहा कि चुनाव, आलोचना और विरोध, ये सभी लोकतंत्र का अंग हैं लेकिन इससे उत्पीड़न से मुक्ति की गारंटी नहीं मिलती। उन्होंने साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कोरोना संकट काल में लोगों पर अधिक दबाव बना है।
दिल्ली में जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर देते समय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि, अब तक हुए 17 राष्ट्रीय आम चुनावों में, लोगों ने सत्ताधारी दल या पार्टियों के संयोजन को आठ बार बदला है। बड़े पैमाने पर असमानताओं, अशिक्षा, पिछड़ापन, गरीबी और कथित अज्ञानता के बावजूद, स्वतंत्र भारत के लोगों ने खुद को बुद्धिमान और कार्य के लिए साबित किया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, लोगों के पास हर कुछ वर्ष के बाद शासक को बदलने का अधिकार रहता है, लेकिन ये अपने आप में अत्याचार के खिलाफ सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि, जनता ने अपने कर्तव्यों का बखूबी निर्वहन किया है। अब, यह उन लोगों की बारी है जो राज्य के प्रमुख अंगों का प्रबंधन कर रहे हैं, वे इस पर विचार करें कि क्या वे संवैधानिक जनादेश पर खरे उतर रहे हैं।