नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गरीब की आजादी, अमीर या संसाधनों से संपन्न लोगों की आजादी से कमतर नहीं है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए बिहार सरकार की अपील खारिज कर दी, जिसमें राज्य सरकार ने एक ट्रक ड्राइवर को 5 लाख का मुआवजा देने के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी. बिहार सरकार को मुआवजे की रकम को लेकर आपत्ति थी.
राज्य सरकार का कहना था कि एक चालक को पांच लाख रुपए का मुआवजा देना उचित नहीं है. राज्य सरकार ने कहा कि हमने एक जिम्मदार सरकार की तरह से काम किया है और उसे हिरासत में लेने वाले एसएचओ को निलंबित कर उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा रही है. लेकिन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में अपील में आना नहीं चाहिए था.
कोर्ट ने आगे कहा कि आपकी अपील का आधार है कि वह सिर्फ एक ड्राइवर है और उसके हिसाब से पांच लाख रुपए की रकम बहुत है. हमारा मानना है कि आजादी के हनन के मामले में इस तरह से व्यवहार नहीं करना चाहिए कि यदि आदमी धनी है तो ज्यादा मुआवजा हो और यदि गरीब है तो कम मुआवजा दिया जाए. पीठ ने कहा कि जहां तक आजादी की क्षति का प्रश्न है तो गरीब आदमी भी अमीर आदमी के बराबर है. हाईकोर्ट द्वारा दिया गया पांच लाख रुपये का मुआवजा सही है.
कोर्ट ने राज्य सरकार को इस दलील पर भी आड़े हाथ लिया कि चालक को रिहा कर दिया गया था, वह अपनी मर्जी से थाने में रह रहा था और आजादी का आनंद ले रहा था. कोर्ट ने कहा कि आप उम्मीद रखते हैं कि कोर्ट इस बात पर विश्वास करेगा. देखिए, आपके डीआईजी क्या कह रहे हैं. वह कहते हैं कि एफआईआर समय से दर्ज नहीं की गई, न ही घायल व्यक्ति का बयान लिखा गया, वाहन का निरीक्षण नहीं किया गया. लेकिन बिना किसी कारण के वाहन के चालक जितेंद्र कुमार को हिरासत में रखा गया.
बता दें कि पिछले साल दिसंबर में हाईकोर्ट ने ट्रक चालक जितेंद्र कुमार को अवैध हिरासत में रखे जाने को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत नागरिकों को मिले अधिकार का उल्लंघन करार दिया था और राज्य सरकार को छह हफ्ते के भीतर चालक को पांच लाख रुपए मुआवजा देने के लिए कहा था. जितेंद्र को परसा थाना के अंतर्गत कथित तौर पर एक दुर्घटना के मामले में अवैध हिरासत में रखा गया था.