सुबह-सुबह अखबारों में हिज़ाब सबंधी ख़बरों को पढ़कर मन बहुत खराब होता है। जहां शिक्षा का स्तर और बढ़ाने की ज़रूरत है, बच्चे दिन पर दिन पिछड़ते जा रहे हैं, हमें हर रोज कोई न कोई मुद्दा दे दिया जाता है कि चलो आप लोग आपस में झगड़ों नहीं तो आपका दिमाग देश की तरक्की और अर्थव्यवस्था की ओर चला जाएगा।
आज भी तमाम स्कूल में कई मुस्लिम लड़किया पढ़ाई करती हैं बिना हिजाब के, सिख लड़के पढ़ते हैं पग के साथ, क्या वाकई हमने आज तक इस बात पर गौर किया था? सच बोलिए? नहीं?
फिर अचानक यह आग क्यों? आज हिजाब पर लड़ाई करवा दी कल पग पर करवाएंगे।
यार, समझो! यह सब क्या वाकई जरूरी है, अगर एक रंग के हिजाब या पग का बोले तो मान लो, सर ही तो ढकना है इससे क्या फर्क़ पड़ेगा या नहीं पड़ेगा। याद रखो इस धर्म जाल में मत फंसों , धर्म का सम्मान अपनी जगह है, और शिक्षा का अपनी जगह। और अगर कोई हिजाब पहनकर आना चाहता है तो स्कूल यूनीफॉर्म के कलर का पहनने दो ना। जिसे पहनना है पहने, नहीं पहनना न पहने। इसे पहनना या नहीं पहनना अनिवार्यता की श्रेणी में डालना जरूरी नहीं है। सभी मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनती भी नहीं है । क्यों फालतू मुद्दे बढ़ाते चढ़ाते रहते हो। वाकई क्या हम आम जनता को इतना फोकट समझ लिया है कि हम अब यही सब बातों में उलझे रहें। मतलब वाक़ई घटिया सोच !!
हमें शिक्षा पानी है अपना भविष्य संवारना है, इन्हीं सब बातों में उलझे रहे तो हो गया विकास…