नई दिल्ली: यूक्रेन और रूस के बीच 10 दिनों से युद्ध जारी है. इस बीच अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ आक्रामक रूख अख्तियार किया है और कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ है. लेकिन UN में हुई वोटिंग में भारत ने हिस्सा नहीं लिया. रूस के रवैये को लेकर भारत ने कोई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है जिससे पश्चिमी देश व्लादिमीर पुतिन  के खिलाफ भारत की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में दो-तिहाई बहुमत के साथ कथित जांच के लिए 4 मार्च को मतदान किया था. यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के संदर्भ में मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन और दुरुपयोग का आरोप था.

क्या चाहता है भारत? 
शीर्ष सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत ने हमेशा कहा है कि वह चाहता है कि युद्ध “तुरंत बंद हो और रूस और यूक्रेन को कूटनीतिक माध्यम से मुद्दों को हल करना चाहिए.

भारत ने पिछले हफ्ते भी संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव पर वोटिंग में भाग नहीं लिया था, जिसमें यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा की गई थी. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा बुलाए गए आपातकालीन सत्र में 193 सदस्यों में से 141 सदस्यों ने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया. संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के अनुसार, पिछली बार सुरक्षा परिषद ने महासभा का आपात सत्र 1982 में बुलाया था.

हालांकि हंगरी और सर्बिया समेत अधिकांश यूरोपीय देश, जिनके मॉस्को के साथ नजदीकी संबंध हैं, लेकिन इन देशों ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा की और प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया.

अपने हितों की रक्षा करेगा भारत
भारत सरकार से जुड़े उच्च सूत्रों का कहना है कि, रूस को लेकर भारत के विचार, कूटनीति और भू-राजनीति यूरोप की तुलना में बहुत भिन्न है. भारत एक अलग महाद्वीप और क्षेत्र में स्थित है इसलिए हमारी मजबूरियां हैं और हम युद्ध के खिलाफ बोलते हुए अपने हितों की रक्षा करेंगे.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने यूक्रेन में नो-फ्लाई ज़ोन स्थापित करने से इनकार करने पर NATO (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) के नेताओं पर हमला बोला था और कहा था कि अब से यूक्रेन में होने वाली हर एक मौत उनकी ज़िम्मेदारी होगी. जेलेंस्की ने एक वीडियो संदेश में कहा कि, यह जानते हुए कि यूक्रेन में हमले और हताहतों की संख्या बढ़ सकती है. इसके बावजूद NATO ने जानबूझकर यूक्रेन में

NATO के महासचिव, जेन्स स्टोल्टेनबर्गी ने शुक्रवार को कहा था कि यदि “नो-फ्लाई ज़ोन” लागू किया जाता है, तो यह यूरोप में पूर्ण युद्ध का कारण बन सकता है, जिसमें कई और देश शामिल हो सकते हैं और बहुत अधिक मानवीय पीड़ा हो सकती है. यह ध्यान देने वाली बात है कि, यही रुख भारत का है, अगर NATO अपने हितों की रक्षा कर सकता है, तो पश्चिमी देश भारत से किसी प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं. यहां तक कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने भी यूक्रेन में “नो-फ्लाई ज़ोन” से इनकार कर दिया.

भारत सरकार के शीर्ष सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत बातचीत और कूटनीति में दृढ़ विश्वास रखता है और उम्मीद करता है कि यूक्रेन और रूस जल्द ही वार्ता के लिए तैयार होंगे और दोनों के बीच एक समझौते को लेकर सहमति बनेगी.

यूक्रेन और रूस के बीच जारी सैन्य संघर्ष को लेकर Quad (चार देशों का समूह) की 3 मार्च को वर्चुअल बैठक हुई. जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलियन पीएम टॉम मोरिसन और जापान के प्राइम मिनिस्टर फ्यूमिओ किशिदा शामिल हुए. इस बैठक को लेकर भारत सरकार द्वारा जारी बयान के अनुसार, इस मुद्दे पर पीएम मोदी ने दोनों देशों को संवाद और कूटनीति के रास्ते पर लौटने की जरूरत पर जोर दिया