छत्तीसगढ़ के चंदखुरी, गिरौदपुरी और सोनाखान का नाम बदल दिया गया है। इसका ऐलान खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कर दिया है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद अब नए नामों से राजपत्र का प्रकाशन किया जाएगा। दरअसल, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और लोगों की मांग पर ये बड़ा फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया है।

अब नए शहरों का नाम वहां की पहचान से जोड़े गए हैं। चंदखुरी का नाम माता कौशल्याधाम चंदखुरी होगा। यहां विश्व का एकमात्र कौशल्या मंदिर है। चंदखुरी श्रीराम वनपथ गमन पर्यटन परिपथ में भी शामिल है। बाबा गुरु घासीदास धाम गिरौदपुरी के नाम से अब गिरौदपुरी को जाना जाएगा। सतनाम पंथ के अनुयायियों की आस्था का बड़ा केन्द्र गिरौदपुरी है। शहीद वीरनारायण सिंह धाम सोनाखान के नाम से सोनाखान जाना जाएगा। 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह की जन्मस्थली सोनाखान ही है।

इस वजह से बदले नाम
छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले गांवों का नाम बदलने का एक नया ट्रेंड शुरू होता दिख रहा है। कांग्रेस विधायकों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर गिरौदपुरी और सोनाखान का नाम बदलने की मांग की थी। इससे पहले कांग्रेस नेता चंदखुरी के नाम में माता कौशल्या धाम जोड़ने की मांग उठा चुके हैं।

बताया जा रहा है, संसदीय सचिव चंद्रदेव राय की अगुवाई में कुछ खास विधायकों का एक दल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिला। इन विधायकों ने मुख्यमंत्री को दो ज्ञापन सौंपे थे। इसमें एक के जरिए गिरौदपुरी के नाम में संत बाबा गुरु घासीदास धाम जोड़ने की मांग की गई। दूसरे ज्ञापन में सोनाखान के साथ शहीद वीर नारायण सिंह धाम जोड़ने का आग्रह किया गया था। चंद्रदेव राय का कहना था, गिरौदपुरी गुरु घासीदास जी की जन्मस्थली है। यह सतनामी समाज की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। हर साल यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।

समाज की यह लंबे समय से मांग रही कि इसका नाम संत बाबा गुरु घासीदास धाम गिरौदपुरी कर दिया जाए। ऐसा होने से देश-प्रदेश में इसकी ख्याति एक पवित्र धाम के रूप में होगी। वहीं 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के पहले शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म सोनाखान में हुआ था। उनके जन्म स्थान को शहीद वीर नारायण सिंह धाम सोनाखान किया जाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने विधायकों की मांग पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी थी। यह मांग उठाने वालों में विधायक बृहस्पत सिंह, गुलाब कमरो, यूडी मिंज, गुरुदयाल सिंह बंजारे और विनय जायसवाल भी शामिल थे।

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में है गिरौदपुरी

गिरौदपुरी सतनाम पंथ का सबसे बड़ा धार्मिक-सामाजिक केंद्र है। महानदी कछार में स्थित बलौदाबाजार-भाटापारा जिले का यह छोटा-सा गांव 18वीं सदी के महान समाज सुधारक गुरु बाबा घासीदास की जन्मभूमि और तपोभूमि है। गुरु दर्शन मेले के अलावा पूरे साल आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए इस जगह पर पगडंडियां नहीं, बल्कि साफ-सुथरी चौड़ी और पक्की सड़कें हैं।

सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरु घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में करीब ढाई सौ साल पहले, 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। उन्होंने गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए सत्य, अहिंसा, दया, करुणा, परोपकार की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। उनसे पीढ़ियों को प्रेरणा मिलती रहे, इस सोच के साथ जैतखाम का निर्माण कराया गया था। यहां गुरु दर्शन मेला हर साल फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक आयोजित होता है।

चंदखुरी गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है।
चंदखुरी गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है।

तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर

राजधानी रायपुर से 17 किलोमीटर दूर स्थित चंदखुरी गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है। यहां तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर है, जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया था। जानकारों के मुताबिक महाकौशल के राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। विवाह में भेंटस्वरूप राजा भानुमंत ने बेटी कौशल्या को दस हजार गांव दिए थे। इसमें उनका जन्म स्थान चंद्रपुरी भी शामिल था।

चंदखुरी का ही प्राचीन नाम चंद्रपुरी अथवा चंद्रपुर था। माता कौशल्या को भी चंद्रपुर विशेष प्रिय था। ऐसा भी माना जाता है कि श्री राम के राज्याभिषेक के बाद भी कौशल्या माता यहां आई थीं। इस गांव का विकास छत्तीसगढ़ सरकार राम वन गमन पथ योजना के तहत कर रही है। इसमें कई मंदिर, भव्य मूर्तियां, गार्डन और दूसरी सुविधाएं जुटाई जा रही हैं।

सोनाखान शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म स्थान है।
सोनाखान शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म स्थान है।

वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के घर हुआ था। वे बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे, उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों तथा भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया। इसके बाद भी बिंझवार आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामसाय का सोनाखान क्षेत्र में दबदबा बना रहा, जिसके चलते अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी। देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी। पिता की मृत्यु के बाद 1830 में वे सोनाखान के जमींदार बने।

लोगों के प्रिय नायक थे वीर नारायण

स्वभाव से परोपकारी, न्यायप्रिय तथा कर्मठ वीर नारायण जल्द ही लोगों के प्रिय जननायक बन गए। 1854 में अंग्रेजों ने नए ढंग से टकोली लागू की, इसे जनविरोधी बताते हुए वीर नारायण सिंह ने इसका भरसक विरोध किया। इससे रायपुर के तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट उनके घोर विरोधी हो गए ।

गोदाम के ताले खोल गरीबों में बंटवा दिया था अनाज

1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा था, अकाल और अंग्रेजों द्वारा लागू किए कानून के कारण प्रांत वासी भुखमरी का शिकार हो रहे थे। कसडोल के व्यापारी माखन का गोदाम अन्न से भरा था। वीर नारायण ने उससे अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने माखन के गोदाम के ताले तुड़वा दिए और अनाज निकाल ग्रामीणों में बंटवा दिया। उनके इस कदम से नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 में संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया। 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया और उनके समर्थक बन गए।