बेगूसराय। एक चुटकी सिंदूर, एक मंगलसूत्र के साथ सात फेरे से बंधने वाली रिश्ते की डोर कितनी मजबूत होती है, उसकी मिसाल बरौनी रिफाइनरी टाउनशिप के एक परिवार में देखने को मिल रही है।शादी के महज एक वर्ष बाद पत्नी के कोमा में चले जाने के बाद भी पति तमाम परेशानियों को झेलते हुए एक उम्‍मीद के साथ सेवा में जुटे हैं। अब तो 10 वर्ष हो गए। नन्‍हीं बेटी अब थोड़ी बड़ी हो गई है। बात कर रहे हैं शहर के जेके इंटर कालेज के पूर्व प्राचार्य डा. सच्चिदानंद के पुत्र वागीश आनंद की।

2012 में हुई वागीश और ईशा की शादी 

वागीश की शादी शहर के प्रोफेसर कालोनी निवासी किशोर कुमार मिश्रा की पुत्री ईशा कुमारी से 18 अप्रैल 2012 को हुई थी। शादी के बाद उनकी जिंदगी में खुशियों ने दस्‍तक दी। पता चला कि ईशा मां बनने वाली हैं।  26 अप्रैल 2013 को ईशा ने बरौनी रिफाइनरी अस्पताल में एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया। परिवार के लिए यह खुशी का पल था। लेकिन स्वास्थ्य कर्मी की एक छोटी सी चूक ने उनकी जिंदगी में अंधेरा कर दिया। बेहोश ईशा कोमा में चली गईं। यह जानकर परिवार के लोग सन्‍न रह गए।

गुरुग्राम, दिल्ली में ढ़ाई वर्षों तक कराया इलाज

वागीश बताते हैं कि ईशा के कोमा में चले जाने के बाद उसे इलाज के लिए गुरुग्राम के मेदांता द मेडीसिटी में छह महीने भर्ती रहने के बाद चिकित्सक के सलाह पर दो साल तक नई दिल्ली में इलाज चलता रहा। इस दौरान वे अपनी पत्नी की इलाज की व्यवस्था भी देखते और बरौनी रिफाइनरी आकर अपनी ड्यूटी भी करते रहे। यह सिलसिला दो वर्षों तक चला। प्रत्येक महीने दिल्ली जाकर पत्नी की इलाज का समुचित प्रबंध करना, नवजात बेटी के लालन पालन की व्यवस्था करना और यहां आकर आफिस में अपने कर्तव्यों का निर्वहण करना, यही उनकी जिंदगी बन गई थी। 29 अक्टूबर 2015 को वे अपनी पत्नी को लेकर बरौनी रिफाइनरी टाउनशिप स्थित अपने क्वार्टर पर लेकर चले आए।

रिफाइनरी प्रबंधन के सहयोग से क्वार्टर को बनाया अस्पताल

वागीश आनंद बताते हैं कि जब बेसुध ईशा को लेकर यहां आए तो बरौनी रिफाइनरी के सहयोग से अपने आवंटित आवास के एक कमरे को मेडिकल वार्ड के रूप में विकसित कराया। आफिस से जब वे अपने आवास पहुंचते हैं तो सारी थकावट भूल कर अपनी बेसुध पत्नी को देखते हैं। मन में एक टीस उठती है। लेकिन रो भी तो नहीं सकता। पत्‍नी के लिए दवा समेत अन्‍य व्‍यवस्‍था करते हैं। बि‍टिया  रानी अब 10 वर्ष की हो गई है। एक तरह से वे ही अपनी बेटी के माता-पिता दोनों की भू‍मिका निभाते हैं।

कोमा में जाने के एक माह बाद मिली शिक्षिका की नौकरी

वागीश आनंद के पिता डा. सच्चिदानंद बताते हैं कि ईशा को पठन-पाठन का वातावरण खूब पसंद था। जिसके कारण उसने शिक्षक नियोजन के लिए भी आवेदन किया था। परंतु, भगवान को कुछ और ही पसंद था, ज्वाइनिंग लेटर मिलने से एक माह पूर्व ही ईशा कोमा में चली गई, जो आज तक वापस नहीं लौट सकी है।

नम आंखें और रुंधे हुए गले से वागीश आनंद बताते हैं कि शादी के समय मैंने यह प्रतिज्ञा ली थी कि पत्नी को कभी रोने नहीं दूंगा, परंतु, आज किस्मत उस मोड़ पर ले आई है कि उसे हंसाने के बजाए प्रतिदिन रुलाना पड़ा है। चूंकि चिकित्सक का कहना है कि यह जितनी रोएगी, उतनी जल्दी इनकी संवेदनाएं जागेगी। उसे रुलाने में खुद भी रोना पड़ता है। उन्‍हें उम्‍मीद है कि ईशा एक दिन जरूर ठीक हो जाएगी।