कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गई है और अब सभी को नतीजों का इंतजार है। करीब ढाई दशकों के बाद कांग्रेस में अध्यक्ष पद गैर-गांधी के हाथों में जाना तय हो गया है। अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर उम्मीदवार थे। माना जा रहा था कि खड़गे को हाईकमान का समर्थन प्राप्त है, ऐसे में उनकी ही जीत तय मानी जा रही है। कांग्रेस चुनाव समिति के चेयरमैन मधुसूदन मिस्त्री ने कहा, ‘आज 9,500 प्रतिनिधियों ने वोट डाला है। कुल मिलाकर राज्यों में करीब 96 फीसदी तक वोटिंग हुई है। कोई अप्रिय घटना भी नहीं हुई है। कांग्रेस मुख्यालय में 37 लोगों ने मतदान किया है और 3 बैलेट बॉक्स प्राप्त हुए हैं।’
कांग्रेस की कई राज्य समितियों की ओर से प्रस्ताव पारित कर मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन किया गया था। यहां तक कि शशि थरूर के गृह राज्य केरल में भी खड़गे की ही स्थिति मजूबत थी। इसलिए उनकी ही जीत तय मानी जा रही है। हालांकि सवाल उठ रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे यदि कांग्रेस के अध्यक्ष बन भी गए तो उनके आगे क्या चुनौतियां होंगी और वह कैसे पार्टी को आगे ले जा पाएंगे। 80 वर्षीय खड़गे गरीब परिवार से आते हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। सामाजिक समीकरणों के लिहाज से कांग्रेस उनके बैकग्राउंड को भुनाना चाहेगी, लेकिन खड़गे कभी दलित नेता के तौर पर पहचान हासिल नहीं कर सके हैं।
चुनाव में हार से अध्यक्षी की बोहनी का है खतरा
मल्लिकार्जुन खड़गे के आगे चुनौती होगी कि वह अपनी सामाजिक पहचान के जरिए कुछ जनाधार कांग्रेस का बढ़ा सकें। यही नहीं अध्यक्ष बनते ही उनके आगे बड़ी चुनौती यह है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पार्टी की स्थिति बेहतर करें। हिमाचल के चुनाव में तो अब तीन सप्ताह का ही वक्त बचा है। यही नहीं पार्टी का प्रचार अभियान भी तेजी नहीं पकड़ सका है। गुटबाजी की समस्या भी चरम पर है। कुछ ऐसा ही हाल गुजरात का है और वहां लगातार नेताओं का पलायन हो रहा है। ऐसी स्थिति में हार का ठीकरा मल्लिकार्जुन खड़गे के ही सिर फूटेगा यानी उनके कार्यकाल की बोहनी हार से होगी।
खड़गे के आगे बिना रबर स्टांप बने फैसले लेने की होगी चुनौती
कांग्रेस में भले ही अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो रहा है, लेकिन अब भी यही धारणा है कि नया नेता गांधी परिवार की रबर स्टांप ही होगा। खड़गे के आगे यह भी चुनौती होगी कि वह एक तरफ स्वतंत्र होकर सही निर्णय लें और गांधी परिवार से टकराव भी न लें। अध्यक्ष रहते हुए बीच की इस लाइन पर चल पाना खड़गे के लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा सत्ता के दो केंद्र बनना भी तय माना जा रहा है, जिसके बीच अपनी अध्यक्षी का इकबाल बनाए रख पाना भी मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए परीक्षा से कम नहीं होगा।