गाँधी जी पुण्य तिथि के अवसर पर नव ऊर्जा द्वारा blood donation किया गया

रक्तदान उपरांत बिलासा ब्लड बैंक कोरबा के द्वारा स्मृति चिन्ह एवं प्रसस्ती पत्र प्राप्त करते हुवे नव ऊर्जा ब्यूरो चीफ उदय चौधरी

इस दौरान नव ऊर्जा ब्यूरो चीफ उदय चौधरी ने कोरबा बिलासा blood bank पहुंचकर AB पॉजिटिव ब्लड डोनेट किया

उदय चौधरी से ज़ब पूछा गया की वह ब्लड डोनेशन के माध्यम से समाज को क्या सन्देश देना चाहेंगे

तब उदय चौधरी (ब्यूरो चीफ नव ऊर्जा ) ने बतलाया की जी मैं देने नहीं बल्कि लेने आया हूँ। दरलसल ज़ब कभी हम किसी का सहयोग कर रहे होते हैं तो उसको पीछे गुप्त रूप से स्वार्थ छीपा हुआ होता है और वह स्वार्थ इस दुनियां का सबसे सुंदर स्वार्थ होता है वह स्वार्थ होता है स्व अर्थ किये जाने वाली कमाई का

जी हां ज़ब हम किसी को सहयोग दे रहे होते हैं तो हमारे पुण्य का खाते में पुण्य जमा हो रहा होता है। जिस तरह bank में जमा किये गये धन विपरीत परिस्थिति में हमारे काम आते हैं। ठीक उसी प्रकार पुण्य कर्म रूपी खाते में जमा किये गये पुण्य कर्म रूपी धन हमें हमारे विपरीत परिस्थितियों में काम आते हैं।

दुवाएं तो रॉकेट से भी तेज काम करती हैं। हमें हमारे जीवन में नेक कर्मों के द्वारा दुवाओं का खाता जमा करते रहना चाहिए। सहयोग देने में सहयोग लेना समाया हुआ होता है। ज़ब हम निस्वार्थ भाव से किसी का सहयोग करते हैं तो हमें दुवाएं मिलती हैं और कुदरत के द्वारा मैंनेज की जा रही कर्म के खाते में हमारे पुण्य कर्म वाले अकाउंट बैलेंस में वह दुवाएं जमा हो जाती है।

ज़ब कभी हमारे जीवन में कोई विपत्ति आती है और ज़ब उससे बाहर निकलने का हमें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा होता फिर अचानक से रास्ते खुलते हैं कोई हमारी मदद को आप जाता है या हमें हमारे विपत्ति का निराकरण करने का उपाय मिल जाता है और उस विपरीत परिस्थिति को हम ऐसे पार कर लेते हैं जैसे किसी ने बच्चे का हाँथ पकडकर रोड पार करा दी हो तो समझ जाओ वह आपके पुण्य कर्मों के फलस्वरूप मिले दुवाओं के वजह से हुआ था। तो दुवाएं हमें हमारे विपरीत परिस्थितियों से निकालने का कार्य करती हैं।

हमें जिंदगी ऐसे जीना चाहिए की हमारे हर कदम में हमें दुवाएं मिले

परमात्मा कहते हैं की दुवाएं दो और दुवाएं लो बस यही छोटी सी शिक्षा प्रैक्टिक़ल लाइफ में करके अपने बच्चे में संस्कार प्रवाहित करने रक्तदान करने आया था जिससे मेरे बेटे में भी वह संस्कार पनप सकें और वह भी भविष्य में पुण्य कर्म करके अपना भाग्य खुद बना सके।

भाग्य लिखने की कलम परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को दे रखी है। पर सृष्ठी में फैले अज्ञानता रूपी अंधकार की वजह से मनुष्य किस्मत के भरोसे बैठा रहता है।

आखिरकार किस्मत या भाग्य लिखने की कलम तो कर्म है अगर हम श्रेष्ठ कर्म करते हैं तो निश्चित ही श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होंगी लेकिन अगर हम नेगेटिव कर्म रूपी बीज बोकार श्रेष्ठ फल पाने की उम्मीद लगाएं तो यह कैसे सम्भव है बस यही इस दुनियां में हो रहा है लोगों को जीवन में श्रेष्ठ प्राप्ति तो चाहिए।

पर उस प्राप्ति को पाने के लिए श्रेष्ठ मेहनत करने से आज लोग कतराते हैं। लोगों को बिना मेहनत के उपलब्धि चाहिए नाम मान शान के इतने लालायित हो चुके हैं लोग जो यह भी नहीं जानते की हम किसी को मदद दे नहीं रहे हैं बल्कि दूसरों को मदद करके हम अपने लिए कुदरत से मदद प्राप्त करने का रास्ता बना रहे हैं।

रही बात इंसानियत की तो इंसानियत हमें केवल रक्तदान में नहीं दिखानी है बल्कि जीवन के हर कदम पर हमें इंसानियत की राह पर चलना है।

हम जो सोचे वह सोच कल्याणकारी हो हम जो बोले वह बोल कल्याणकारी हो हम जो कुछ भी कर्म करें वह कर्म कल्याणकारी हो तब ही सही मायने में हम इंसानियत के साथ जीवन जी सकेंगे और अपने साथ साथ अपने संबंध संपर्क के लोगों में भी सकारात्मकता का संचार कर सकेंगे।

आगे उदय चौधरी ने बतलाया की वह पिछले 6 वर्षो से सोशल वर्क कर रहे हैं और वह विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक और शैक्षणिक संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्व विद्यालय से जुड़कर मानव कल्याण के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

वह खुद आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग मैडिटेशन के माध्यम से नशे से 6 वर्ष पूर्व पूरी तरह से मुक्त हुवे हैं। और तब से ही तन मन धन से सामाजिक कार्य में इन्वॉल्व रहते हैं। वह शादी सुदा हैं उनकी एक बेटी जाह्नवी चौधरी और एक बेटा लव चौधरी है।

उदय चौधरी एक लेखक हैं, उन्होंने बैंगलोर से फार्मेसी की पढ़ाई की है। अब तक कुल 30 अलग अलग क्षेत्रों में कार्य करने के अनुभवी हैं। जिसमे से फार्मास्युटिकल कम्पनी, इन्सुरेंस, एन.जी.ओ, राजनीती, पत्रकारिता, कैटरिंग इत्यादि कार्य समाहित है। वर्तमान में नव ऊर्जा में वह ब्यूरो चीफ के तौर पर कार्यरत हैं। यह उनके जीवन का 31 वां कार्य है। उनकी आयु अभी महज 37 वर्ष है।

उनका सपना है की जिस तरह वह पूर्णतया व्यसन मुक्त जीवन जी रहे हैं उसी तरह अपने संबंध संपर्क के लोगों को भी व्यसन मुक्ति हेतु मार्गदर्शन करते रहें

उन्होंने जीवन में बहुत उतार चढाव देखे लेकिन वह बतलाते हैं की आध्यात्मिकता के सहारे जीवन की हर बड़ी से बड़ी विपत्ति तिनका नजर आती है। आध्यात्मिक ज्ञान से मनोबल बढ़ता है। और बढे हुवे मनोबल से जीवन का हर कार्य सम्भव हो जाता है।

आगे चौधरी जी बतलाते हैं की जिस तरह से कुर्सी के चार पाए होते हैं जिनके सहारे कुर्सी ख़डी रहती है। बिल्कुल उसी तरह जीवन के भी चार स्तम्भ होते हैं जिसके सहारे खुशहाल जीवन जिया जा सकता है। वह चार स्तम्भ हैं तन, मन, धन और जन

तन से स्वस्थ्य रहने के लिए हमें सात्विक. भोजन ग्रहण करना चाहिए नियमित एक्सरसाइज करना चाहिए

मन से स्वस्थ्य रहने के लिए हमें आध्यात्मिक ज्ञान लेना चाहिए

धन से स्वस्थ्य रहने के लिए हमें सकारात्मक कर्म कर धन कमाना चाहिए तभी उस पॉजिटिव तरीके से कमाए गये धन के द्वारा जो अन्न घर पर लाते हैं। उस अन्न से मन पॉजिटिव बनता है जिससे जीवन खुशहाल बनता है।

चौथा स्तम्भ है जन का तो हमें हमारे संबंध संपर्क के लोगों के साथ मजबूत और मधुर संबंध निभाने आना चाहिए

वर्तमान समय ज्यादातर लोगों का फोकस धन से संपन्न बनने पर है और धन से सम्पन्न बनने के लिए गलत तरीके इख़्तियार कर रहे हैं जिसकी वजह से लोगों के साथ रिश्ते ख़राब होते जाते हैं क्योंकि नेगेटिव रास्ते से धन कमाने से नफ़रत ग़ुस्सा इर्ष्या अहंकार यह सभी इंसान के व्यवहार में समा जाते हैं और इन नेगेटिव फीलिंग्स के साथ व्यवहार करने की वजह से ऐसे व्यक्तिगत से लोगों का रिस्ता टूटता जाता है।

जिसका उदाहरण हम आज अपने आसपास देख सकते हैं की धन से संपन्न बनने के चक्कर में आज भाई-भाई, पति-पत्नी, बाप-बेटे की लड़ाई हो जा रही है।

आज अपने घर के लोगों से भावनात्मक रूप से लोग इतने दूर होते जा रहे हैं और मोबाइलों के माध्यम से विश्व के दूसरे कोने में बैठे अनजान से चैटिंग करके सुख ढूंढ़ रहे हैं।

लोगों की अपेक्षाएं इतनी बढ़ गई है की जिंदगी संबंधों में उन्हें सुख डंक चाहिए वहां से सुख लेने की अपेक्षा रखने की वजह से संबंध कमजोर होते जा रहे हैं संबंधों के बिच स्वार्थ इतना हावी हो चला है की आज कोई जल्दी किसी पर विश्वास नहीं करता।

आगे चौधरी जी बतलाते हैं की स्कूलों में एक चीज़ मिसिंग है और वह है संस्कार की शिक्षा। स्कूल के किताबी ज्ञान शिस्टाचार और संस्कार में अंतर होता है प्रायः संस्कार का अभिप्राय लोग शिष्टाचार से समझते हैं पर संस्कार अर्थात आदत बच्चों को अच्छी आदतों की शिक्षा दिव्य गुणों को धारण करने की शिक्षा आज नहीं मिल पाती जिसकी वजह से आज बच्चा पढ़ लिख लेने के बाद ज़ब रियल जिंदगी में प्रवेश करता है तो जिंदगी की चुनौतियों से होकर गुजरने के लिए जिस आंतरिक शक्ति और गुणों की आवश्यकता पडती है।

वह आंतरिक शक्ति और गुण क्षीण होने की वजह से रियल लाइफ के उतार चढाव से होकर गुजरने के दौरान लोग टूट जाते हैं। संघर्ष आज किसी को पसंद नहीं। लोगों को आसानी से सफलता चाहिए होती है।S

साधनों के पीछे और शारीरिक आकर्षणो के पीछे भागता मानव मन सच्चा सुख सच्ची शांति ढूंढ़ रहा है कोई पैसों में सुख तलाश रहा है कोई स्त्री में कोई साधनो में सुख ढूंढ़ रहा है। वह सुख वह शांति सब अंदर हैं और मानव उसे बाहर विनासी वस्तुवों में ढूंढ़ रहा है।

वर्तमान समय आंतरिक धन से यह दुनियावी मनुष्य खोखले होते जा रहे है और ज़ब खुद ही खोखले हैं तो लोगों को क्या देंगे इसलिए सब सुख एक दूसरे से मांग रहे रहे हैं प्रेम एक दूसरे से मांग रहे हैं।

यह तो वही बात हो गई की एक डाउन बैटरी से दूसरी डाउन बैटरी को चार्ज करना। ज़ब की डाउन बैटरी को चार्ज करने के लाइट बिजली के कनेक्शन की जरूरत होती है जो बिजली पॉवर हाउस से आ रही होती है। ठीक उसी प्रकार जिसके अंदर खुद ही प्रेम सुख शांति आंतरिक शक्ति गुण क्षीण है वह दूसरों को कैसे सुख शांति प्रेम दे सकता है।

इसलिए वर्तमान समयकाल में लोगों को जरूरत है पॉवर हॉउस परमात्मा से कनेक्ट होने की और उनसे चार्ज होकर भरपूर होने की उनसे गुण, शक्तियां अपने में भरकर भरपूर होने की और ज़ब हम आंतरिक गुण, शक्ति रूपी धन से संपन्न होंगे तो सम्पन्नता की वजह से आंतरिक रूप से संतुष्ट होंगे और ज़ब आंतरिक रूप से संतुष्ट होंगे तो आंतरिक सुख शांति बरकरार रहेगी। और ज़ब खुद भरपूर रहेंगे तो इस तरह अपने संबंध संपर्क के लोगों को उठते-बैठते, चलते-फिरते सुख शांति देते चलेंगे।