योजना में लागू करने की होगी कोशिश- CM बघेल के सलाहकार
रायपुर। प्रवासी मजदूरों के हित में चल रहे ‘जनता का फैसला’ तीसरा दिन काफी गर्म रहा. रायपुर के बैरन बाजार स्थित पॉस्टोरल हाउस में जनता के ज्यूरी के सवालों का सामना इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकार प्रदीप शर्मा, छत्तीसगढ़ के लेबर कमिश्नर एलेक्स पॉल मेनन, इंडस्ट्री एक्सपर्टस एवं सिविल सोसायटी के दिग्गजों को करना पड़ा.
ज्यूरी के सवालों के बाद मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने कहा जनता के ज्यूरी के जो भी फैसले और सिफारिश होंगे. उसे राज्य योजना आयोग के सदस्य के समक्ष रखा जाएगा. उसे नीति और योजनाओं में लागू करने की पूरी कोशिश की जाएगी.
आज का ज्यूरी का सवाल-
- ठेकेदारों प्रवासी मजदूरों को लेकर जाने व काम कराने वाले ठेकेदारों का जांच व पंजीयन क्यों नहीं किया जाता?
- अन्याय करने वाले लेबर कांट्रेक्टरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही आसानी से क्यूं नहीं होती?
- भारत में गरीबों व प्रवासी मजदूरों के हित में बहुत सारे मौजूदा कानून, योजनाएं और नीतियां हैं. उसके बाद भी भयानक गरीबी है और हमें इसके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. सरकार इनमें से किसी के प्रति जवाबदेह क्यों नहीं है?
- मजदूरों पंजीकरण समूह में क्यों होता है व्यक्तिगत रूप क्यों नहीं ?
- पंचायत स्तर पर हमारा पंजीयन क्यों नहीं?
- कार्य के घंटे ज्यादा होने के बावजूद असमान मेहनताना मिलता है, मूल सुविधाओं से भी हमें वंचित रखा जाता है ऐसा क्यों?
- ठेके पर गया मजदूर कंपनी का कामगार क्यों नहीं बन सकता?
- हमारी जमीनों पर बड़ी-बड़ी कंपनियां काबिज हो रही है सरकार क्या कर रही है?
- हमारी आजीविका, संस्कृति संरक्षित रहे इसके लिए सरकार क्या कर रही है?
- लॉकडाउन के समय सरकार कहां थी, इस दौरान हमारे प्रवासी मजदूर भाईयों ने क्या-क्या न दुख सहे ?
- क्या सरकार वोट लेने के लिए ही होती है?
प्रदीप भार्गव पूर्व अध्यक्ष, सीआईआई वेस्टर्न रिजन ने कहा कि मजदूरों के मामले में उद्योग, सरकार, मजदूर यूनियन, सभी दोषी हैं. मुझे जरा भी इस बात को स्वीकार करने से गुरेज नहीं है कि मजदूरों को सरकार, मजदूर यूनियन, उद्योग सभी से मजदूरों के मामले में चूक हुई है.
मजदूरों की स्थिति पहले से खराब थी यह सरकारों, उद्योगों, व मजदूर यूनियनों सभी को मालूम था बस कोरोना महामारी ने उसको एक तरीके से जनता के समक्ष उभार कर रख दिया यह सिलसिला काफी पहले से चलता आ रहा है, लेकिन, इस लॉकडाउन में छोटे उद्योगों से लेकर मल्टीनेशनल कंपनियों तक को घाटा हुआ. सभी को सीख मिली है.
मुझे खुशी है कि एनजीओ मजदूर, छत्तीसगढ़ सरकार एक मंच पर आकर इस मुद्दों को उठा रही है, और मुझ जैसे उद्योग के प्रतिनिधि को भी जनता के सामने पेश होना पड़ रहा है. पश्चिमी भारत के करीब 20 कंपनियों ने यह विचार किया है कि वह कांट्रेक्ट लेबर को लेकर जो भेदभाव है वे उसे खत्म करने की पहल करेंगें। सरकार को भी इसमें सहयोग करना पड़ेगा. नीतियों में सुधार आवश्यक है, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है कि प्रवासी मजदूर संगठित हो.
नीति आयोग द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिए बना रही नीति में वर्किंग कमेटी के सदस्य राजीव खंडेलवाल ने कहा प्रवासियों मजदूरों को गंतव्य स्थान पर पुलिस स्टेशन तक पहुंच की सुविधा, सार्वजनिक परिवहन, कोर्ट रूम, पीडीएस और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शासन सुविधाओं की व्यवस्था करना शासन का दायित्व है.
निर्मल अग्नि (बंधुआ मुक्ति मोर्चा) का कहना था कि माइग्रेंट वर्कर्स यूनियन छोटा और बिखरा हुआ संघ है. इसमें कसावट लाने की जरूरत है. खासकर उन्हें जोड़ने की जरूरत है जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है. दूसरी बात डिजिटल पंजीयन की जिम्मेदारी सिर्फ प्रवासी मजदूरों पर नहीं छोड़ा जा सकता है. उसके लिए सरकार को जिम्मेदारी लेनी होगी. सिविल सोसायटी को इसमें मदद करना होगा.