कोरबा/कटघोरा:- वनमंडल कटघोरा में हाथियों का आतंक इस कदर बढ़ा हुआ है कि प्रभावित ग्रामीणजन हाथी के नाम मात्र से ही खौफजदा हो जा रहे है। उत्पाती हाथियों का झुंड लगातार तांडव मचाते हुए अबतक खेती- किसानी के करोड़ो का नुकसान कर चुके है, तो ग्रामीणों द्वारा कड़ी मेहनत से बनाए उनके दर्जनों मकानों को ध्वस्त कर चुके है, और तो अनेक ग्रामीणों को असमय काल के ग्रास में पहुँचा चुके है। जिनके कोहराम से गांवों में बसने वाले ग्रामीण भय भरे माहौल में जीवन व्यतीत कर रहे है और जान- माल की रक्षा को लेकर हताश व चिंतित लोगों के दिन का चैन और रातों की नींद इस डर में हराम हो चुका है कि पता नही कब हाथियों का दल आ धमके और गांव को तबाह कर दे। उन हाथी पीड़ितों का दुख- दर्द सुनने वाला कोई नही है। बल्कि इस आपदा के क्षतिपूर्ति में वनविभाग हाथी पीड़ित ग्रामीणों को मुआवजा बतौर थोड़े- बहुत राशि का मलहम लगाकर खानापूर्ति करते आ रहा है। कभी कर्नाटक राज्य से मनमाने खर्च कर प्रशिक्षित कुमकी हाथी लाया गया था, वहीं हुल्ला पार्टी का सहारा लेने, ग्रामीणों को हाथियों से बचाव के उपाय बताने सहित ना जाने क्या क्या स्कीम सामने लायी गई जो बेकाबू हाथियों के सामने फ्लॉप साबित हो चला आ रहा है। यह अवश्य है कि हाथियों पर प्रतिवर्ष लाखों- करोड़ों जरूर खर्च किये जा रहे है जिसका लाभ तो देखने को नही मिल पा रहा है लिहाजा दिन ब दिन हाथी और भी आक्रोशित होते जरूर देखें जा रहे है। प्रभावित ग्रामीण भी इस संकट को लेकर यह सोचते हुए बेहद हताश है कि क्या कभी हाथियों के आतंक से उन्हें निजात मिल पाएगा या फिर युं ही दहशत के साये में जीवन गुजारना पड़ेगा..?
वही सरकार के लेमरू हाथी परियोजना की स्कीम पर भी कुछ सुगबुगाहट होता नही दिख रहा है। बीते कुछ दिनों पूर्व सरकार की योजना कि अब हाथियों को सड़ा धान खिलाया जाए, ताकि वे गांव- देहात से दूर रहें। लेकिन कटघोरा वनमंडल में विचरण कर रहे हाथियों का दल शायद इतना बेवकूफ नही कि जंगलों, खेतों तथा ग्रामीणों के घरों में उपलब्ध खाद्य पदार्थों को छोड़कर फारेस्ट का दिया हुआ सड़ा धान खाएंगे। हाथी को अच्छे बुरे खाद्य पदार्थ की पहचान अच्छी तरह होती है, साथ ही उनकी याददाश्त भी वर्षों तक कायम रहती है तथा उनका प्रिय भोजन गन्ना व केला भी है जो छत्तीसगढ़ में बहुत है। शायद वनविभाग के अफसरों को यह बात मालूम होनी चाहिए जो उनके ट्रेनिंग कोर्स में शामिल है।ऐसे में शायद कोई पागल हाथी ही हो जो जंगल व ग्रामीण इलाके में उपलब्ध खाद्य पदार्थों को छोड़कर सड़ा धान खाए। जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में हाथियों के उत्पात की घटनाएं आज से एक दशक पूर्व सरगुजा तथा रायगढ़ जिले तक ही सीमित था जो वनविभाग की लापरवाही से बढ़ते- बढ़ते कटघोरा वनमंडल तक आ पहुँचा जो यहां के वनांचल क्षेत्रों के निवासियों के लिए नासूर बनकर रह गया है। न जाने इस हाथी आपदा से पीड़ित ग्रामीणों को निजात कब मिल पाएगा..?