Raipur. यूक्रेन से रविवार सुबह दिल्ली पहुंचे छत्तीसगढ़ के 6 स्टूडेंट देर रात अपने घर तक पहुंचे। रायपुर एयरपोर्ट पर उन्हें लेने उनके परिजन आए हुए थे। परिवार के बीच पहुंचकर सभी ने राहत की सांस ली है, लेकिन उनकी चिंता में पीछे छूट गए लोग अब भी शामिल हैं। इन विद्यार्थियों का कहना है, हम लोग यूक्रेन के बिल्कुल पश्चिम के एक सुरक्षित शहर में थे। वहां आवाजाही आसान है, लेकिन जो लोग राजधानी कीव और खारकीव जैसे शहरों में हैं, उनका तो निकलना भी मुश्किल हो गया है।
महासमुंद जिले के सिन्धौरी निवासी दीपक साहू ने दैनिक भास्कर से अपनी वापसी की कहानी साझा की है। दीपक ने बताया, उनके सहित छत्तीसगढ़ के 30-40 लोग उझहोरोद की नेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। वे और रविवार को लौटे उनके पांच और साथी अभी MBBS पहले साल की पढ़ाई कर रहे हैं। उनका शहर हंगरी और स्लोवाकिया की सीमा से केवल 8-10 किमी दूर है। वहां युद्ध का असर नहीं पहुंचा है, लेकिन जब सभी को बाहर निकलने की बात आई तो हमने दूतावास से संपर्क किया। वहां से मिले निर्देशों के बाद 26 फरवरी की सुबह हम लोग छोटे-छोटे समूहों में यूनिवर्सिटी से बाहर निकले।
दीपक ने बताया कि बसों का इंतजाम हमारी यूनिवर्सिटी ने ही किया था। यह बस हमें हंगरी सीमा के चेकपोस्ट तक लेकर गई। वहां हंगरी स्थित भारतीय दूतावास के लोग पहले से मौजूद थे। दस्तावेज आदि देखने के बाद सभी को आसानी से प्रवेश मिल गया। चौकी को पार करने के बाद हंगरी की तरफ दूतावास की ओर से बसों की व्यवस्था थी। हम उसमें बैठे, उसके बाद हमें बूडापेस्ट ले जाया गया। वहां हम लोगों को एयर इंडिया के जहाज में बिठाया गया। यह जहाज यहां के समय के मुताबिक रात करीब एक-डेढ़ बजे उड़ा। सुबह 9-9.30 बजे तक वे लोग दिल्ली पहुंच चुके थे। महासमुंद के एक किसान के बेटे दीपक को उम्मीद है कि बहुत जल्द यह युद्ध खत्म होगा और वे अपनी पढ़ाई पूरी करने वापस लौट पाएंगे।
कुछ और लोग आज आ जाएंगे
दीपक साहू ने बताया, उनकी यूनिवर्सिटी के और लोग रविवार शाम को बॉर्डर पार कर पाए थे। संभव है कि वे लोग भी सोमवार तक भारत पहुंच जाएं। उनमें से कई लोग छत्तीसगढ़ के गांवों-शहरों के भी हैं। हंगरी बॉर्डर पर इवानो तक से लोग पहुंच रहे हैं। जाे वहां से थोड़ी दूरी पर है। दीपक ने बताया, वहां से केवल भारतीय और दूसरे देशों के लोग ही वापस नहीं आ रहे हैं। बड़ी संख्या में यूक्रेन के विद्यार्थियों और दूसरे नागरिकों को भी सीमावर्ती देशों के जरिए यूरोपीय देशों में भेजा जा रहा है।
400 किमी दूर लवीव तक युद्ध की आग
दीपक साहू का कहना था, युद्ध की आग उझहोरोद शहर से 400 किमी दूर स्थित लवीव तक पहुंच गई है। वहां लगातार हमले हो रहे हैं। वहां पढ़ने वाले लोग घिर गए हैं। सबसे खराब हालत कीव और खारकीव की है। वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग के कई बड़े संस्थान हैं। भारतीय विद्यार्थियों की बड़ी संख्या उन्हीं संस्थानों में पढ़ रही है। उन शहरों पर रूस का नियंत्रण हो गया है, अथवा गलियों में लड़ाई चल रही है। लोग बंकरों में, भूमिगत मेट्रो स्टेशनों और यूनिवर्सिटी के बेसमेंट में छिपे हुए हैं। उनका वहां से निकलना मुश्किल है। अगर जल्दी मदद नहीं पहुंची तो अनहोनी भी हो सकती है।
ऐसे युद्ध की उम्मीद नहीं थी
रायपुर पहुंचे विद्यार्थियों ने बताया, उन्हें वहां रूस के साथ विवाद और तनाव बढ़ने की खबर थी। स्थानीय छात्रों से इस विषय पर बहुत बात नहीं होती थी, लेकिन समाचारों में ये चीजें आ रही थी। लेकिन कहीं से इस बात की उम्मीद नहीं थी कि युद्ध हो जाएगा। जब युद्ध शुरू हो गया तो हर ओर अफरातफरी थी। हम जिस शहर में थे वहां शांति थी, लेकिन हमने तय किया कि समय रहते यहां से सुरक्षित निकल लेना ही ठीक है। उसके बाद दूतावास से संपर्क किया गया।
यह लोग वापस लौटे हैं
जो 6 स्टूडेंट रविवार रात रायपुर पहुंचे हैं, वे अलग-अलग चार जिलों से हैं। इनमें से आस्था सिंह रायपुर की हैं। नादिया अली का निवास छोटा बाजार, चिरमिरी जिला कोरया है, वहीं शमशी फिरदौस सुपेला भिलाई की रहने वाली हैं। महासमुंद जिले के सिन्धौरी गांव से राहुल पटेल और दीपक साहू हैं, वहीं पारस साहू महासमुंद जिले के ही फरफौद के निवासी हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नई दिल्ली में इन विद्यार्थियों से मुलाकात कर वहां के हालात पर बातचीत की थी। इन विद्यार्थियों के दिल्ली से घर जाने तक का खर्च राज्य सरकार ने उठाया है।
इधर, भारतीय दूतावास ने ट्रेन से पश्चिम पहुंचने की सलाह दी है
कीव स्थित भारतीय दूतावास ने रविवार को एक नई एडवाइजरी जारी की। इसके मुताबिक यूक्रेनियन रेलवे ने युद्धग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को पश्चिमी हिस्से में पहुंचाने के लिए विशेष ट्रेनों का संचालन शुरू किया है। यह सभी के लिए फ्री है। रेलवे की सुविधा पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर है। दूतावास ने इस ट्रेन सुविधा को सुरक्षित बताया है। भारतीयों को कहा गया है कि वे इन ट्रेनों के जरिए पश्चिमी हिस्से में पहुंचे।
भारतीयों को हमेशा समूह में सफर की हिदायत
भारतीय दूतावास की ओर से सलाह दी गई है कि हमेशा समूह में सफर करें। अगर अकेले हैं तो सभी दस्तावेज साथ रखें और जैसे ही कोई भारतीय समूह मिलता है उसमें शामिल हो जाएं। अभी हंगरी और रोमानिया के रास्ते लोगों को निकाला जा रहा है। जल्दी ही कुछ और सीमा चौकियों से निकासी का काम शुरू हो जाएगा। हालांकि वहां फंसे लोग वीडियो जारी कर कह रहे हैं कि वे अपने ठिकानों से निकल नहीं पा रहे हैं ताे रेलवे स्टेशन तक कैसे पहुंचेंगे। हर रास्ते पर सेनाएं खड़ी हैं। कुछ लोगों के साथ सुरक्षाबलों द्वारा मारपीट करने की भी शिकायत आ रही है।