नई दिल्ली पिछले दो साल से अधिक समय से देशभर में कोरोना संक्रमण का प्रकोप जारी है। ओमिक्रॉन देश में तीसरी लहर का कारण बन रहा है, इससे पहली की दो लहरों में लोगों को तमाम तरह की समस्याएं देखने को मिल रही थीं। कोरोना संक्रमण के अलावा ठीक हो चुके लोगों में लॉन्ग कोविड की दिक्क्तें भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण बनी हुई हैं। पोस्ट कोविड की समस्याओं पर अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने हालिया रिपोर्ट में बताया है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान संक्रमित रह चुके लगभग 50 प्रतिशत लोगों में एक खास तरह की समस्या के बारे में पता चला है। कुछ लोगों में यह लक्षण ठीक होने के डेढ़ साल से अधिक समय तक बनी रह सकती है।

स्वीडन में किए गए इस शोध में वैज्ञानिकों ने बताया कि संक्रमण से ठीक हो चुके लगभग 50 फीसदी लोगों में गंध न आने की समस्या देखने को मिल रही है। इतना ही नहीं कुछ लोगों में यह दिक्कत स्थायी तौर पर गंध की भावना में परिवर्तन की समस्या का भी कारण बन सकती है। आइए आगे की स्लाइडों में इस बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
गंध न आने की समस्या

गंध की भावना में परिवर्तन की समस्या
एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया कि महामारी के शुरुआती दिनों से ही संक्रमितों में गंध की अचानक कमी या गंध को लेकर हो रही समस्या को लक्षण के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि समय के साथ देखने को मिला है कि कोविड से ठीक होने के बाद भी ज्यादातर लोगों में इस तरह की दिक्कतें लंबे समय तक बनी रहती हैं। गंध न आने की समस्या को वैज्ञानिक लॉन्ग कोविड के संकेत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि फिलहाल ओमिक्रॉन संक्रमितों में गंध न आने की समस्या, डेल्टा और अल्फा वैरिएंट की तुलना में कम देखने को मिली है।
अध्ययन में क्या पता चला?
कोरोना से ठीक होने के बाद भी लोगों में जारी गंध न आने से संबंधित दिक्कतों के बारे में पता लगाने के लिए  स्टॉकहोम में करोलिंस्का के वैज्ञानिकों ने साल 2020 में संक्रमण की पहली लहर में कोविड संक्रमित रह चुके 100 लोगों पर अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि कोविड से ठीक होने के 18 महीने बाद करीब 4 प्रतिशत लोगों ने पूरी तरह से गंध की क्षमता खो दी। एक तिहाई लोगों में गंध का पता लगाने की क्षमता कम हो गई और लगभग आधे लोगों ने पारोस्मिया की शिकायत की। पारोस्मिया के कारण लोगों को अलग चीजों से अलग तरह की गंध आ सकती है।
कोविड-19 और गंध की भावना में परिवर्तनक्यों हो रही हैं ऐसी दिक्कतें?
वैज्ञानिकों की टीम ने निष्कर्ष निकाला कि कोविड से उबरने वालों में से करीब 65 प्रतिशत को डेढ़ साल के बाद तक भी गंध की कमी या चीजों के वास्तविक गंध को महसूस करने की क्षमता में कमी की समस्या हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस संभवत: हमारे ओलफेक्ट्री ग्रंथि को क्षति पहुंचाता है जिसके कारण इस तरह की समस्या देखने को मिलती है। इसके अलावा जिन लोगों में कोविड के गंभीर संक्रमण देखे गए हैं, उनमें इस तरह की समस्याओं का जोखिम अधिक हो सकता है।
क्या ओमिक्रॉन संक्रमितों को भी हो रही है यह समस्या?
यूके की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के अनुसार, डेल्टा वैरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन के संक्रमण की स्थिति में लोगों में इस तरह की दिक्कतें कम देखने को मिल रही हैं। हालांकि इसके लिए फिलहाल कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है जो दर्शाता हो कि ओमिक्रॉन ओलफेक्ट्री सिस्टम के लिए कम खतरनाक है। गंध की गंभीर कमी लोगों में अवसाद और कई तरह की अन्य समस्याओं का भी कारण बन सकती है, इस बारे में सभी को अलर्ट रहने की आवश्यकता है। कोरोना संक्रमण को कभी भी हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: दैनिक नवऊर्जा समाचार पत्र के लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।