रायपुर। छत्तीसगढ़ के औद्योगिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों मे टीबी का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है, केवल रायपुर में ही तीन सालों के भीतर इंडस्ट्रियल इलाके और स्लम बस्तियों 17,182 मामले सामने आए हैं। इस संदर्भ में स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर द्वारा प्रदूषण को लेकर किया गया सर्वे डराने वाला है।
प्रदूषण से बढ़ जाता है टीबी का खतरा
एसएचआरसी यानि स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर के सर्वे में खुलासा हुआ है कि प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में हवा में पीएम का स्तर तय मानक से 28 गुना तक अधिक है। यह रिपोर्ट रायपुर और कोरबा क्षेत्र में औद्योगिक इलाकों में किये गए सर्वे के आधार पर बनाया गया है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि हवा में पीएम स्तर 2.5 या उससे अधिक है, तो उसका असर हृदय और फेफड़ों में आता है। ऐसे में टीबी के संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र में पीएम का स्तर 11 गुना ज्यादा है और कोरबा के औद्योगिक क्षेत्र का स्तर 28 गुना है। इसके अलावा इन क्षेत्रों के हवा के नमूनों में मैग्नीज, सीसा और निकल तय मानकों से अधिक मिले हैं।
पं. जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डा. कमलेश जैन बता रहे हैं कि इन क्षेत्रों की हवा के नमूने कोरोना के पहले और दूसरे चरण के दौरान लिए गए थे। इस दौरान लॉक डाउन के कारण यातायात पर रोक थी, अधिकतम कारखानें भी बंद थे। अगर प्रदूषण का स्तर उस दौरान इतना था तो अनलॉक के दौरान कितना होगा। डॉ जैन बताते हैं कि संक्रमण अधिक होने के असर ह्दय और फेफड़ों पर होता है। ये दोनों कमजोर हो जाते हैं, अन्य बीमारियेां से शरीर भी कमजोर होता है, ऐसे में टीबी का संक्रमण लगने का खतरा 10 गुना तक बढ़ जाता है।
छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक मरीज रायपुर जिले से
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 से साल 2021 तक छत्तीसढ़ में सबसे अधिक टीबी के मरीज रायपुर जिले में मिले हैं। रायपुर में साल 2019 में 6900 टीबी मरीज, 2020 में 5044 टीबी मरीज और 2021 में 5238 टीबी मरीज मिले हैं। इसके पीछे का कारण स्वास्थ्य विभाग, राज्य के बड़े औद्योगिक इलाके को बताता है, जो कि रायपुर में ही है। रायपुर जिले के सिलतरा और उरला जैसे औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण और धूल की वजह से सांस और फेफड़े से संबंधित बीमारियां सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। इधर कोरबा की बात करें तो साल 2019 में 1932 टीबी मरीज, 2020 में 1303 टीबी मरीज और 2021 में 1232 टीबी मरीजों की पहचान हो सकी है। ये आंकड़े पब्लिक और प्राइवेटदोनों क्षेत्रों के हैं।
जोखिम वाले क्षेत्रों में विशेष ध्यान
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला बता रही हैं कि प्रदेश में टीबी मरीजों की स्क्रीनिंग और इलाज को लेकर विशेष अभियान चलाया जा रहा है। जनवरी 2021 से शुरू हुए इस अभियान के तहत अब तक विभिन्न जिलों के 11 हजार श्रमिक मलिन बस्तियों के एक लाख 89 हजार 276 लोगों, वृद्धाश्रमों में रहने वाले 790 बुजुर्गों और 289 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जांच की गई है। इस तरह राज्य में कुल दो लाख 23 हजार 955 लोगों की जांच की जांच हो चुकी है।
स्क्रीनिंग की कमी और मॉनिटरिंग के अभाव ने बढ़ाया खतरा
रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र, बस्ती वाले इलाके कहने को तो शहर में हैं लेकिन ये अपने आप में बिल्कुल एक अलग दुनिया की तरह हैं। जहां नियमित हेल्थ चेकअप जैसी कोई व्यवस्था नहीं है और यहीं से स्थिति गंभीर हो जाती है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग और जिला स्वास्थ्य संचालनालय के पास कोई सटीक आंकड़ा नहीं है कि फैक्ट्रियों में काम करने वाले कितने कर्मचारी टीबी के शिकार हैं और किन चरणों में उनका इलाज चल रहा है। फैक्ट्री के पास ही बस्तियां भी हैं और ये दोनों ही इलाके टीबी के लिए हाई रिस्क जोन में हैं। इन इलाकों में प्रदूषण का स्तर आम इलाकों की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। ऐसे में खांसी आना, सांस लेने में तकलीफ जैसे शुरुआती लक्षण को सामान्य परिस्थिति मानते हुए लोग टीबी की जांच में देरी करते हैं। जब तक टीबी की स्थिति साफ होती है, तब तक स्थिति काफी गंभीर हो चुकी होती है। इसकी एक वजह समय से स्क्रीनिंग और मॉनिटरिंग नहीं हो पाना भी है।
25 से 40 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा टीबी
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेशभर में औद्योगिक इलाकों और 25-40 आयुवर्ग में ही सबसे ज्यादा टीबी के मामले सामने आए हैं। साल 2019 से लेकर साल 2021 तक के आंकड़ो पर गौर करें तो साफ होता है कि 25-40 साल की उम्र में ही टीबी के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। औद्योगिक इलाकों में सामने आ रहे टीबी के इन मरीजो पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। स्क्रीनिंग और मॉनिटरिंग के जरिए इन्हें रोकने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ में रायपुर, कोरबा के अलावा रायगढ़ और दुर्ग औद्योगिक क्षेत्र वाले जिले हैं। टीबी या क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के द्वारा लोगों की जांच कराई जा रही है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 में कराए गए सर्वे में प्रदेश में लगभग 43 हजार टीबी मरीज पाए गए थे। कोरोना बाद चल रहे सर्वे में दो लाख 23 हजार लोगों की जांच की जा चुकी है, जिसमें महज 34 टीबी के मरीज पाए गए हैं। छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला बता रही हैं कि प्रदेश में जितने भी टीबी के मरीज मिले हैं, उन सभी का उपचार शुरू कर दिया गया है।
मास्क बचाता है टीबी के संक्रमण से
1- 2 हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर डॉक्टर को दिखाएं, दवा का पूरा कोर्स लें। डॉक्टर से बिना पूछे कोई भी दवा का इस्तेमाल न करें। मास्क पहनें या हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को पेपर नैपकिन से कवर करें। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अधिकारियों का कहना है वर्ष 2020 में कोरोना काल के दौरान लोगों ने मास्क का उपयोग किया और एक-दूसरे से शारीरिक दूरी भी बनाए रखी। जिसके कारण से मरीजों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। परिवार के लोगों को घर में मास्क पहनकर रहना चाहिए। इस कारण टीबी के संक्रामण से बचाव हुआ। मरीज किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें। यहां-वहां नहीं थूकना चाहिए। मरीज हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहंे। साथ ही एसी से परहेज करे, पौष्टिक खाना खाए, एक्सरसाइज व योग करना चाहिए।
टीबी से जुड़ी सामान्य जानकारी
टीबी संक्रामक बीमारी है, जो ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होती है। टीबी का सबसे ज्यादा प्रभाव इंसान के फेफडों पर होता है। फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गले में भी टीबी हो सकती है। हालांकि टीबी ज्यादातर फेफड़ों की ही बीमारी है, जो कि हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलती है। टीबी के मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं। टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, अगर समय पर सही इलाज न मिले तो वह हिस्सा बेकार हो जाता है। इसलिए टीबी के आसार नजर आने पर तुरंत जांच करानी चाहिए।