प्रधानमंत्री जी की 36 इंच छाती। निर्णय है अभी और भी थाती।।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश की ऐसी दुर्गति, कभी देखने को नहीं मिला होगा।
अपने संविधान को निर्लज्ज करते तीन आयोग।
एक विषय बिंदु पर कभी हां – कभी ना करते हुए उपभोक्ता मामले के तीनों आयोग ने उपभोक्ता मामले के न्यायालय (आयोग) के एक तथ्य कथन पर व्याख्या को एक जैसे बनाकर नहीं किया होना संविधान की बेबसी कठपुतली – खिलौना जैसा है।
पंचशील कौशल सेवा संस्थान ने बताया और नमूना दिखाया है।।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश की ऐसी दुर्गति,
एक, दो , तीन – चार, बार हर एक को चार -चार पन्ने पर दिखा कर उसने संबंधित संविधान की मान मर्यादा को बचाने आर या पार की जंग छेड़ा है।
ये कैसी आज़ादी है कसाई जैसे कि कोई बकरे को अपने धारदार हथियार के रहते हुए भी उसे हलाल कर अधमरा छोड़ दिया करता है। ठीक उसी तरह से उपभोक्ता मामले के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने भी अपने पदनाम, कलम की धार से जब चाहे तब उपभोक्ता के प्रकरण को समाप्त कर देते हैं और नहीं तो आधा मार कर उसे अपने हाल पर खुद ही मरने को छोड़ दिया करता है। जैसे कि ऊपर कन्फोनेट सर्च करने पर केस स्टेटस में 01.08.18. से 26.08.2018 में तब तक उपभोक्ता नारायण प्रसाद बनाम छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी पेंडिंग है। दिखाई दे रहा है। पर इस न्यायालयीन कार्यवाही सूची में 03.02.2017 से ही निरस्त दिखा कर उपभोक्ता जो अपीलकर्ता थे उसे जानकारी भी नहीं दी गई है। जिला फोरम जिसे किस रूप में जाना नीचे देखें।
ऊपर संबंधित प्रकरण के व्याख्या से अलग, आर पी/1352/2015 के राष्ट्रीय आयोग पर नारायण प्रसाद बनाम छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी, कोरबा के मामले में 26.08.2018 को आन लाइन पर पेंडिंग दिखाई दे रहा है, और इस प्रकरण में दो प्रकरण आईं ए/3467/2015 (अपील) और आई ए/7844/2016 कोर्ट के आदेश का अनादर का भी 2015 से 26.08 .2018तक पेंडिंग है स्पष्ट लिखा है। आगे इसी कड़ी में पुनः राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने निर्लज्जता दिखाई है।