शासकीय महाविद्यालय बतौली (सरगुजा) के हिंदी विभाग द्वारा मुंशी प्रेमचंद के 141 वीं जयंती पर 31 जुलाई 2021 को “प्रेमचंद के साहित्य में कृषक जीवन और वर्तमान किसान” शीर्षक पर एक ऑनलाइन वेबीनार आयोजन किया था जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर अरविंद अशोक तिग्गा व्याख्याता एकलव्य विद्यालय मैनपाट (सरगुजा) ने व्याख्यान दिया।
प्रेमचंद की साहित्यिक रचनाओं एवं उसमें वर्णित जीवन के विविध पक्षों का उल्लेख करते हुए अरविंद अशोक तिग्गा जी ने कहा कि आजादी के पूर्व कृषक जीवन का जितना विशद और विस्तृत चित्रण प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में किया है उतना चित्रण अन्य साहित्यकारों की रचनाओं में नहीं मिलता। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जीवन के विविध पक्षों का वर्णन करते हुए सभी प्रकार की समस्याओं को चित्रित करने का प्रयास किया है जिसमें किसान-मजदूरों की समस्या, बहु विवाह, बाल विवाह, सामाजिक कुरीतियां, छुआछूत, ऊंच-नीच, सामाजिक-आर्थिक शोषण, स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार, देश प्रेम, स्त्री विमर्श और दलित विमर्श जैसे ज्वलंत मुद्दे शामिल है। किसानों की दशा का चित्रण प्रेमचंद की कहानी और उपन्यासों में मिलता है वह यथार्थ है। वर्तमान समय में “गोदान” के होरी जैसे कृषकों की अधिकता ही स्वतंत्र भारत में है जो अनेक प्रकार से शोषण का शिकार हो रहे हैं।
हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. गोवर्धन प्रसाद सूर्यवंशी ने व्याख्यानमाला का संचालन करते हुए कहा कि प्रेमचंद का हिंदी साहित्य जगत में कथा साहित्य और उपन्यास विधा में महत्वपूर्ण योगदान है जिनके नाम पर कहानी का एक युग “प्रेमचंद युग” के रूप में जाना जाता है। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन समय के रीति रिवाज, परंपरा, युगीन समस्या, देश प्रेम, समाज सेवा आदि का वर्णन मिलता है जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा लिखित गोदान में कृषक जीवन का वास्तविक चित्रण आज के किसानों की दशा का पूर्व पिठिका के रूप में परिलक्षित होता है।
वाणिज्य विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. बलराम चंद्राकर ने मुख्य वक्ता अरविंद अशोक तिग्गा जी का परिचय देते हुए व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया और कहा कि प्रेमचंद युगीन साहित्यकार हैं जिनकी रचनाओं को पढ़ते हुए हमने कृषक जीवन को पास से देखा और अनुभव किया है। आज भी किसान कभी उपज के सही मूल्य के नाम पर तो कभी बीज और खाद के नाम पर शोषित हो रहा है।
वेबीनार के समापन अवसर पर महाविद्यालय में राजनीति विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. पीयूष कुमार पांडेय ने आमंत्रित वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार प्रकट करते हुए प्रेमचंद जी के द्वारा लिखित “निर्मला” उपन्यास का विवरण देते हुए कहा कि यह बेमेल विवाह और दहेज प्रथा पर आधारित तत्कालीन समय की स्थितियों को निरूपित करने वाली कालजयी रचना है। प्रेमचंद एक दूरदर्शी एवं युग प्रवर्तक साहित्यकार थे।
हिंदी विभाग द्वारा प्रेमचंद जयंती पर आयोजित वेबीनार में महाविद्यालय के प्राचार्य बी.आर. भगत, प्रो. तारा सिंह, डॉ. शैहून एक्का, अतिथि शिक्षक कन्हैया लाल, श्रीमती चंचला गुप्ता, राधे सिंह कंवर, राम प्रसाद राम, बसंत कुमार, राजेश तिर्की एवं राजेश कुमार सहित महाविद्यालय के अन्य कर्मचारी एवं विद्यार्थी गण उपस्थित थे। उक्ताशय की जानकारी महाविद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रभारी प्रो. गोवर्धन सूर्यवंशी ने दिया।