एक वक्त था आज से 11 वर्ष पूर्व ज़ब मैं निहायत ही कामचोर किस्म का व्यक्ति था। उस वक़्त मैं बैंगलोर में दवा कम्पनी में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव का कार्य किया करता था। तब कंपनी द्वारा जो जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी। उसे मैं बिल्कुल नहीं निभाता था। और महीने में केवल 5 से 6 दिन ही कार्य पर निकलता था।
बांकी के दिन कि false रिपोर्टिंग करके घर पर पड़ा रहता था। पर बिना अपनी जिम्मेदारी निभाये महीने कि तनख्वाह पूरी लेता था। मुझे लगता था मुझे कोई नहीं देख रहा हैं।
पर इसके पीछे जो भाव था उस भाव का फल तो मुझे मिलना ही था।
घर पर पड़े पड़े मैं पूरी तरह से आलसी, कामचोर बन गया। घर बैठे बैठे शराबी बन गया। बस शराब पिता और पड़े रहता। दिनभर घर पर निठल्लों कि तरह टीवी देखते रहता, मुझे काम पर जाने का जरा भी दिल नहीं करता था।
और शाम में इंटरनेट cafe में जाकर ऑनलाइन रिपोर्टिंग कर देता कि आज 10 नहीं 15 डॉक्टर से मुलाक़ात हूई 6 दवा दुकान वालों से मुलाक़ात हूई।
मुझे जिंदगी कितनी ईजी लग रही थी और मैं यह सोचता कि यह कम्पनियों को धोखा देना निठल्ले पड़े रहना कितना आसान है। मैं सोचता कि सबके पास इतना दिमाग़ क्यों नहीं होता कि बिना काम किये पैसे घर पर आते रहे, ना जाने लोग क्यों मेहनत किया करते हैं।
ज़ब चीटिंग करके मुफ्त में पैसे आ ही जाते हैं तो मेहनत करने कि क्या जरुरत। आखिरकार पढ़े लिखें हैं बुद्धि से काम लेंगे ऐसा सोचता और विवेक का दुरूपयोग करता रहता नेगेटिव दिशा में एनर्जी लगाता। घर पर रहकर ही सैलरी उठाते रहता और उस तरह का धोखेबाजी वाला काम करके कामचोरी करके अपने को बड़ा बुद्धिवान समझता था। और हमेसा यही सोचता कि कौन देख रहा हैं।
इतने शातिराना अंदाज से हर कम्पनी के साथ चीटिंग करता कि बॉस को पता नहीं चकता था। और जिस दिन बॉस के साथ काम पर निकल जाता उस दिन ऐसा काम करके दिखलाता कि मुझ जैसा काम करने वाला डेडिकेटेड व्यक्ति किसी कम्पनी में ना मिले
जैसे ही बॉस चले जाते तो एकांत में पुनः मेरे अंदर का जानवर मेरा ओरिजिनल रूप वही पियक्कड वाली दिनचर्या यथावत शुरू हो जाती। बस पीकर घर पर निठल्ले पड़े रहना। सचमुच उस वक़्त मुझे यही लगता था कि मुझे कोई नहीं देख रहा।
फिर मेरे कर्मों का रिटर्न मिलना मुझे शुरू हुआ। मैं शराब का आदि बन चूका था और जिस वजह से मैं सचमुच में किसी संस्था में कार्य करने योग्य नहीं रहा था। शारीरिक रूप से एकदम दुर्बल, आंखे मरे हुवे व्यक्ति कि तरह कपड़े पहनता तो लगता किसी ने हैंगर में टांग दिया हो ऊपर से टाई पहनकर निकलता। तो बाहर से अपने को पूरी तरह से सजा लेता ब्रांडेड सर्ट, ट्राउजर, शूज, घड़ी, स्पोर्ट्स बाइक, टाई, महंगे परर्फ्यूम, महंगे क्रीम इत्यादि। लेकिन अंदर से चरित्रहीन, खोखला बन चूका था, लोगों का मुझे पर से विश्वास उठने लगा था। मेरे संबंध सबसे ख़राब हो चुके थे मेरा मन अशांत होता गया मैं डिप्रेसन में जाने लगा।
फिर एक ऐसा समय आया ज़ब मुझे कोई काम नहीं देता था। क्योंकि मेरा व्यक्तित्व शराबी हो चूका था जो मुझे काम देने वाले का नाम बदनाम कर सकता था। बेरोजगार होने से और पिने लगता और भूल से कहीं रोजगार मिल जाता तो उससे मिले सारे पैसे पिने में खर्च कार देता।
गैर जिम्मेदार, शराबी, आलसी, कामचोर, झूठा, धोखेबाज यह सब मेरे चरित्र का हिस्सा थे। फिर एक वक़्त ऐसा आया ज़ब मैं खुद अपनी ही नेगेटिव आदतों से परेशान हो गया और आत्महत्या तक करने का प्रयत्न किया।
मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब मैं अपनी इन आदतों से मुक्ति कैसे पाऊं मैं जिंदगी जीना चाहता था मगर अपने को सुधारकर जीना चाहता था। पर समाज का ऐसा कोई प्लेटफार्म नजर ही नहीं आ रहा था जो मेरे जीवन कि गाड़ी को वापस पटरी पर लाने के लिए मार्गदर्शन करें। ना समाज में ऐसा कोई व्यक्ति मेरे सामने था जो आदतों को बदलने का उपाय बतलाये।
तब मैं बारीकी से समझ गया था कि अगर हम यह सोचकर काम कार रहे कि हमें कोई नहीं देख रहा तो हम बिल्कुल गलत फहमी में है। दो लोग होते हैं जो देख रहे होते हैं पहला तो वह परमात्मा और दूसरा हम खुद अपने को देख रहे होते हैं।
ज़ब हम कोई ऐसा कार्य करते हैं जो ईश्वरीय डायरेक्शन के विपरीत है, श्रीमत के विपरीत है तो उस कर्म से हमारा कार्मिक अकाउंट बनता है और निश्चित समय पर हमें वह रिटर्न मिलता हैं। वह भी सुध समेत। जैसे मुझे मेरे कर्मों का फल मिला सुध समेत जिसकी वजह से मैंने जिंदगी के कितने ही वर्ष नौकरी बदलने में गंवा दिए।
लेकिन जैसे ही समझ आया कि कितनी भी नौकरियां बदल लूँ परिस्थितियां तब तक नहीं बदलने वाली ज़ब तक मैं अपने आदतों को नहीं बदल लेता और जैसे ही मैंने अपनी आदतों को बदलना शुरू किया बाहरी परिस्थितियां अपने आप बदलने लगीं।
कभी भी यह ना सोचे कि कोई नहीं देख रहा।
आज कि तारीख में मैं जो कोई भी कार्य करता हूँ तो उस कार्य को पूरी ईमानदारी, समर्पणता के साथ निभाता हूँ। जिससे उस कार्य में सफलता निश्चित ही मिलती है। अब श्रीमत अर्थात भगवान द्वारा दर्शाये मार्ग को कर्म में अप्लाई करके जीवन जीता हूँ। जिसकी वजह से हर कर्म श्रेष्ठ कर्म बन जाता है।
अब अपने को बाहर से नहीं बल्कि अंदर से आंतरिक गुण, शक्तियों से सजाता हूँ। और अब ज़ब श्रीमत प्रमाण कार्य करता हूँ तो आंतरिक संतुष्ठी मिलती है। क्योंकि कर्म में गुण शक्तियां इस्तेमाल होती हैं जिससे कर्म में दिव्यता आ जाती है और ज़ब कर्म ही दिव्य कर्म बन जाते तो दिव्य कर्म के फल भी तो दिव्य ही होंगे।
अब ज़ब मैं श्रीमत प्रमाण जीवन निर्वहन कर रहा हूँ ऐसे में कोई भूतपूर्व मित्र मुझसे आकर वह पुरानी आदतों का हवाला देते हुवे मुझे वर्तमान में शर्मिंदा महसूस करवाने कि कोसिस करता है तो मुझे पर उनकी बातों का रत्ती भर भी प्रभावित नहीं पड़ता क्योंकि मैं वर्तमान में वैसा नहीं बल्कि मेरी वह आदत मुझसे 100% मेरे अवचेतन मन से डिलीट हो चुकी है और पिछले छह वर्षो में मैंने दोबारा किसी तरह के व्यसान सामग्री को हांथो तक नहीं लगाया तो अब मैं अंदर से क्या हूँ यह भी केवल दो ही शख्स जानते हैं एक मैं आत्मा और दूसरा परमात्मा तो कोई कुछ भी अफवाह उड़ाए अगर वह नेगेटिव बातें मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं तो मुझे अशांत होकर रियेक्ट करने कि आवश्यकता नहीं।
हां यह भी जरूर समझ आ जाता है कि भूतपूर्व का शराबी अवस्था वाला मित्र अगर पास्ट कि बातों के आधार पर मुझे प्रेजेंट में निचा दिखलाने कि कोसिस कार रहा है तो कहीं ना कहीं उसे मेरे वर्तमान के व्यक्तित्व से इर्ष्या हो रही है। और वह खुद को इन्फेरियर महसूस कर रहा है इसलिए शब्दों के माध्यम से मुझे निचा दिखलाकार अपनी आत्मा को संतुष्ट करना चाहता है।
बहरहाल जीवन जीने कि कला का एक अध्याय परमात्मा ने यह भी सीखलाया है कि कथनी करनी में अंतर ना हो। एक बार जो जिम्मेदारी उठा ली तो अंत तक डटे रहे और दिव्य गुणों शक्तियों के माध्यम से कार्य को सफल बनाओ, विजयी बनो और तब तक डटे रहो ज़ब तक विजय गले का हार ना बन जाये।
जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत है यह सिर्फ दो ही शख्स जानते हैं परमात्मा या अंतरात्मा
Om shanti