Moharram : 20 अगस्त 2021 दिन-शुक्रवार को मुहर्रम (ताजिया विसर्जन) को पर्व मनाया जाएगा। मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुस्लिम समाज के लोग रोजे रखते हैं और मस्जिदों में इबादत की जाती है।

गौरतलब रहे कि मोहर्रम की शुरुआत वर्षों पूर्व बादशाह तैमूर लंग ने की थी, जिनका ताल्लुक शीआ संप्रदाय से थे। तब से लेकर आज तक मुस्लिम संप्रदाय के लोग इराक के कर्बला में मौजूद शीआ-सुन्नी इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति की परंपरा को मानते आ रहे हैं।

हमारे देश में ताजिए का बादशाह तैमूर लंग से गहरा नाता है। बरला वंश का तुर्की योद्धा तैमूर की ख्वाहिश थी कि वह विश्व विजेता बने। तैमूर लंग का जन्म सन् 1336 में समरकंद के नजदीक केश गांव जिसे अब उज्बेकिस्तान कहा जाता है, में हुआ था, जिसे चंगेज खां के पुत्र चुगताई ने प्रशिक्षित किया था। कुशल प्रशिक्षण को देखते हुए उसे सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही चुगताई तुर्कों का सरदार बना दिया गया।

बादशाह तैमूर लंग ने अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया, फारस और रूस के कुछ भागों को जीत लिया और सन् 1398 में भारत पहुंचा । वह लगभग 98000 सैनिक भी साथ लेकर आया। उसने दिल्ली में मेहमूद तुगलक से युद्ध जीतकर स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया। तैमूर लंग तुर्की शब्द का अर्थ तैमूर लंगड़ा होता है। तैमूर दाएं हाथ व दाएं पैर से निस्तेज था। शीआ संप्रदाय का तैमूर मुहर्रम माह में अक्सर इराक जाता था, लेकिन हृदय रोग व अन्य बीमारियों के कारण नीम-हकीमों के परामर्श के बाद वह एक बार इराक नहीं जा सका। बादशाह तैमूर को प्रसन्न करने के लिए दरबारियों ने इराक के कर्बला में बने इमाम हुसैन के कब्र की प्रतिकृति बनवाई। बांस की किमचियों की मदद से कब्र का ढांचा तैयार किया किया, जिसे कई रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया। इसे ही ताजिया का नाम दिया गया।

पहली बार 801 हिजरी में बादशाह तैमूर लंग (Taimur Lang) के दरबार में इसे रखा गया। तैमूर का ताजिया विख्यात हो गया और देश के कोने-कोने से श्रद्धालुगण इसकी जियारत के लिए पहुंचने लगे। तैमूर लंग को प्रसन्न करने के लिए अन्य रियासतों में भी इस परंपरा का सख्ती से पालन कराया गया। दिल्ली के आसपास शिया संप्रदाय से जुड़े नवाबों ने शीघ्र ही इस परंपरा को अपना लिया। तब से लेकर आज तक यह  अनूठी परंपरा भारत, पाक, बर्मा, म्यांमार, बांग्लादेश में मनाई जा रही है। तैमूर ताजिये की इस परंपरा को अधिक दिनों तक नहीं देख सका और गंभीर बीमारी के कारण शिमकेंट, तजाकिस्तान लौट गया, जहां उसकी मौत हो गई, लेकिन तैमूर के जाने के बावजूद भारत में यह परंपरा जारी रही। यह दिन पूरे विश्व में काफी अज्मत, अहमियत व फजीलत वाले दिन के रूप में मनाया जाता है। तैमूर रिवायत को मानने वाले मुस्लिम संप्रदाय के लोग रोजा-नमाज के साथ इस दिन ताजिये को ठंडा करके शोक मनाते हैं।