रायपुर। Vat Savitri Vrat 2021: राजधानी के ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के समीप स्थित शिव मंदिर के समक्ष विशाल वट वृक्ष 150 सालों से पथिकों को राहत पहुंचा रहा है। इसे बूढ़ेश्वर बरगद के नाम से जाना जाता है। बारिश से बचने एवं भीषण गर्मी में राहगीर और आसपास के दुकानदार सुकून भरी छांव तलाशने वट वृक्ष के नीचे शरण लेते हैं। दिनभर मेहनत मजदूरी करने वाले, ठेला, रिक्शा चलाने वाले और मिट्टी के बर्तन बेचने वालों के लिए तो यह वट वृक्ष वरदान की तरह है, थक-हारकर वे वृक्ष की ठंडी छांव में राहत महसूस करते हैं।

तीन किलोमीटर दूर से आती हैं महिलाएं

बूढ़ेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश पांडेय बताते हैं कि 20 साल पहले उनके पिताजी की 95 साल की उम्र में मृत्यु हुई थी। पिताजी ने बताया था कि उनकी माताजी वट सावित्री पूजा करने यहीं पर आतीं थीं। एक अनुमान के अनुसार, यह वृक्ष 150 साल से भी अधिक पुराना है। यहां पूजा करने महामाईपारा, ब्रह्मपुरी, सदरबाजार, सत्तीबाजार, ब्राह्मणपारा, कंकालीपारा, तात्यापारा, बूढ़ापारा समेत दो-तीन किलोमीटर दूर से महिलाएं पूजा करने पहुंचती हैं।

चूंकि वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है और वृक्ष के सामने ही ऐतिहासिक शिव मंदिर है इसलिए इस वृक्ष की अत्यधिक मान्यता है। वृक्ष के नीचे पूजा करने से पहले महिलाएं शिव मंदिर का दर्शन करती हैं।

पुष्टिकर समाज करता है देखरेख

पुष्टिकर ब्राह्मण समाज के नेतृत्व में बूढ़ेश्वर मंदिर का संचालन किया जाता है, मंदिर समिति द्वारा ही वट सावित्री पूजा के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। वृक्ष के चारों ओर बैठने के लिए चबूतरा बनाया गया है, साथ ही गर्मी के मौसम में ठंडा पानी पीने अनेक मटके रखे जाते हैं, ताकि पथिक ठंडा पानी पीने के साथ चबूतरे पर बैठकर आराम कर सके। इस साल कोरोना महामारी के चलते महिलाओं को दूर-दूर बैठकर पूजा करने और मास्क लगाए रखने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

सुबह से दोपहर तक 300 महिलाएं आएंगी

पुजारी पांडेय ने बताया कि नौ जून को वट सावित्री पूजा करने सुबह 8 बजे से महिलाएं पहुंचेंगी। दोपहर एक बजे तक 300 से अधिक महिलाएं हर साल पूजा करतीं हैं। इसके बाद भी जगह न मिलने पर महिलाओं के आने का सिलसिला चलता रहता है।