गरियाबंद। कोरोना से मृत शव को ले जाने में परजिनों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. इस समस्या को देखते हुए युवाओं की एक टोली ने जिला अस्पताल में एक निशुल्क शव वाहन की व्यवस्था करवाई है. संक्रमित शव के अंतिम सफर में वाहन की भूमिका जितनी अहम है, उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका उसके चालक हरकू राम की है. हरकू ने 20 अप्रैल से अब तक 535 किमी का सफर तय कर 10 संक्रमित शव को अंतिम संस्कार के लिए परिजनों के सुपुर्द किया है. राजिम के बेलटूकरी से देवभोग तक का सफर शामिल है.
15-15 घण्टा बिताना पड़ा शव के साथ
चालक हरकू राम ने बताया कि 23 अप्रेल को रावनसिंघी के एक संक्रमित की मौत के बाद ,उसे दोपहर को डेड बॉडी गांव तक छोड़ना पड़ा. परिवार संक्रमित था, इसलिए बॉडी लेने कोई नही पहुंचे थे. शाम 5 बजे बॉडी छोड़कर 7 बजे तक अपने गृह ग्राम डोंगरीगांव पहुंचा ही था कि,रात 8 बजे के आसपास फिर से उसे जिला अस्पताल अपने वाहन तक आना पड़ा. इस बार देवभोग के घुमरगुड़ा निवासी मोहन पटेल लाल का शव पहुंचाना था. 23 की रात को ही 9 बजे बॉडी लेकर निकला. अंतिम संस्कार के कोई प्रबन्ध नहीं होने के कारण रात 12 बजे शव को देवभोग के मर्च्युरी में रखना पड़ा. अगले दिन शव को देवभोग से घुमरगुड़ा ले जाना था, इसलिए परिजन वाहन को रोक दिए. अगली सूबह 24 अप्रैल को 11 बजे तक अंतिम संस्कार हुआ तब जाकर वापस आना पड़ा. शुरुआत के दिन 20 अप्रैल को एक साथ दो दो शव ले जाना पड़ा था.
पिकअप के ड्राइवर सीट पर अकेला, इसलिए संक्रमण का खतरा नहीं
हरकू ने बताया कि पिकअप के चालक बैठने की केबिन में हमेशा वह अकेला आवाजाही करता है. संक्रमित परिवार से दूर रहने की पूरी कोशिश करता है. शव पीछे की केबिन में आ जाता है. सेनेटाइजर व मास्क हमेशा इस्तेमाल करता है. शव कोविड प्रोटोकाल के तहत पेकिंग होने के कारण संक्रमण फैलने की गुंजाइश कम हो जाती है, हालांकि इस काम को लेकर परिजन व ग्रामीण उससे दूरी बना लिए है. पहले वाहन गांव में खड़ा करता था, पर विरोध के बाद वाहन जिला अस्पताल परिसर में खड़ा करता है, रात जितनी भी देर हो जाये हरकू साइकिल से अपने गांव लौटता है.
इन लोगों का सहयोग
20 अप्रैल के पहले तक जिले में एक मात्र शव वाहन मुक्तांजलि (डायल119) से संचालित था. अकेले वाहन से जिला अस्पताल, कोविड अस्पताल के अलावा आसपास के ब्लॉक तक निर्भर थे. एक समय मे ज्यादा लोगो की मौत के दरम्यान अकेला वाहन सभी को एक समय पर सेवा नहीं दे पा रहा था. कोरोना से मौत का आंकड़ा बढ़ा तो डेड बॉडी छोड़ने निजी वाहन चालक महज 50 से 80 किमी दूरी तक ले जाने अधिकतम 30 हजार भाड़े तक ले रहे थे. 15 अप्रेल को मैनपुर के शिक्षक अजय ध्रुव की मौत के बाद परिजनों को वाहन के लिए भटकते देख गरियाबन्द के युवा समाज सेवी सन्नी मेमन, पालिकाध्यक्ष गफ्फार मेमन, आबिद ढेबर, मैनपुर के नीरज हेमंत सांग, डॉक्टर हरीश चौहान व चंद्रभूषण चौहान ने मिलकर ऐसे शवों के अंतिम यात्रा हो या उसे परिजनों तक पहुंचाने वाहन का प्रबंध किया. किराए के बोलेरो पिकअप को लेकर निशुल्क शव वाहन के सेवा में लगाया है. इस वाहन के आने के बाद मुक्तांजलि के वाहन के साथ अब शवों को समय पर छोड़ा जा रहा है. हालांकि जिले के देवभोग, छुरा व मैनपुर ब्लॉक के लिए तीन शव वाहन प्रशासन ने 23 अप्रैल को उप्लब्ध करा दिया है. पर चालकों की व्यवस्था नहीं होने के कारण ये तीनों शव वाहन का संचालन फिलहाल नहीं हो रहा है.
कलेक्टर दर से भी कम कीमत पर 24 घण्टे ड्यूटी
निजी वाहन के चालक हरकू राम जैसे ही मुक्तांजलि वाहन का चालक गुलशन कुमार भी रियल कोरोना वारियर की भूमिका निभा रहे हैं. महज 7500 की मासिक वेतन जो कि कलेक्टर दर से भी कम है, उस पर 24 घण्टे ड्यूटी निभा रहे है. कोरोना संक्रमण के खतरे की परवाह किये बगैर गुलशन ने पिछले डेढ़ माह में 25 से भी ज्यादा शव को छोड़ने के अलावा 5 शव जिसके परिजन संक्रमण के वजह से नहीं पहुंचे, उसका शव दाह स्वयं किया है.
शव प्रबन्धन के लिए इन खामियों को समय पर दूर करना जरूरी है-
- बजट का कोई प्रावधान नहीं होना बताकर जिला अस्पताल में शव पेकिंग के लिए अब तक किसी की नियुक्ति नहीं, जबकि काम करने लोग तैयार है. इसके अभाव में 50 घण्टे तक शव का अंतिम संस्कार नहीं हो सका था.
2.साल भर हो गए जिला कोविड अस्पताल में पृथक मरच्यूरी का प्रबंध नहीं. मौत के बाद परिजनों को कोविड अस्पताल से जिला अस्पताल की 5 किमी दूरी को बार बार तय करना पड़ता है.
3-जिला अस्पताल में मर्च्युरी प्रभारी नहीं है, डेड बॉडी का लेखा जोखा भी एक जगज पर नहीं है. बॉडी लेने कोई पहुंच गया तो मरच्यूरी की चाबी के लिए कई जगह तहकीकात करने की नौबत आ जाती है.