बिहार में महागठबंधन के साथ दूसरी पारी खेल रहे जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में भाजपा के तमाम नेताओं के हर तरह के हमले की काट में एक ‘ब्रह्मास्त्र’ खोज लिया है। हमला सुशील मोदी करें या संजय जायसवाल, सवाल गिरिराज सिंह उठाएं या रविशंकर प्रसाद, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने एक ही लाइन पकड़ ली है- अंड-बंड बोलेंगे नहीं तो दिल्ली वाला आगे नहीं बढ़ाएगा, दिल्ली वाला भाव नहीं देगा।
मतलब, बीजेपी का कोई भी नेता जो कुछ भी बोलता है वो सब नीतीश कुमार के लिए अंड-बंड बन जाता है। एनडीए छोड़ते वक्त नीतीश कुमार को पता था कि बीजेपी वाले चुप बैठेंगे नहीं। उनको ये भी पता था कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद बीजेपी के हमले और तेज और तीखे भी होंगे। इसलिए बीजेपी के हमलों की काट चाहिए और वो उन्होंने बहुत सधे तरीके से खोज ली।
ये अंड-बंड वाली रणनीति बहुत सोच-समझकर बनाई गई दिखती है। याद करिए 9 अगस्त का वो दिन जिस दिन नीतीश के साथ जेडीयू और फिर बाद में महागठबंधन के विधायकों की बैठक हुई थी जिसके बाद नीतीश ने इस्तीफा सौंपकर महागठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश किया और अगले दिन तेजस्वी के साथ नई सरकार बनाई।
जेडीयू विधायकों की उस मीटिंग के बाद जब अगले दिन ललन सिंह ने मीडिया से बात की तो जेडीयू और नीतीश कुमार दोनों की इस रणनीति को सामने रख दिया। ललन सिंह ने तब सुशील मोदी की चर्चा करते हुए कहा कि उनको नीतीश से मित्रता के कारण बीजेपी ने साइडलाइन कर दिया है इसलिए अब अगर नीतीश या जेडीयू के खिलाफ बोलने से उनका पुनर्वास होता है तो इससे हम लोगों को खुशी होगी।
इसके बाद विधानसभा में नीतीश कुमार ने बीजेपी विधायक नितिन नवीन की टोका-टोकी से नाराज होकर कहा कि अंड-बंड बोलोगे नहीं तो दिल्ली वाला बढ़ाएगा भी नहीं। इसके बाद नीतीश कुमार पटना में कई बार मीडिया द्वारा बीजेपी नेताओं के हमले पर पूछे गए सवाल के जवाब में यही लाइन लेते दिखे कि ये लोग अनाप-शनाप बोलेंगे नहीं तो इन लोगों को दिल्ली वाला यानी पार्टी नेतृत्व आगे नहीं बढ़ाएगा।