ड्राइवर की बेटी ने मेहनत से बदली किस्मत; बनी अपने गांव की पहली डॉक्टर

गरीबी भी नहीं तोड़ पाई हौसला

9वीं के बाद राज्य सरकार से मिली एक साइकिल को धन्‍यवाद दिया.

झालावाड़ जिले के छोटे से गांव पचपहाड़ में एक टेंपो ड्राइवर की बेटी अपने गांव की पहली डॉक्टर बनने जा रही है. चौथी बार NEET UG परीक्षा में उपस्थित होकर, नाज़िया ने इस बार 668 नंबर स्‍कोर किए और राष्ट्रीय स्तर पर 1759 और OBC कैटेगरी में 477वीं रैंक हासिल की. एजेंसी के मुताबिक, 22 वर्षीय नाज़‍िया ने अपनी सफलता के लिए कोटा के एलन इंस्टीट्यूट में मिली कोचिंग और कक्षा 9वीं के बाद राज्य सरकार से मिली एक साइकिल को धन्‍यवाद दिया.

8वीं कक्षा के बाद नाजिया भवानीमंडी के एक स्कूल में चली गईं, जो उनके गांव से कुछ दूरी पर स्थित था. सरकार से मिली साइकिल की मदद से वह हर दिन स्‍कूल जा पाईं. बिना किसी शैक्षिक बैकग्राउंड वाले गरीबी से प्रभावित परिवार में जन्मी नाज़िया ने कक्षा 10 और 12 में सरकारी छात्रवृत्ति के जरिए पढ़ाई की. यह लगभग एक लाख रुपये की छात्रवृत्ति थी, जिससे उन्हें शहर जाकर कोचिंग करने में मदद म‍िली. नाजिया ने बताया, “राज्य सरकार द्वारा दी गई दो छात्रवृत्तियां मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं थीं क्योंकि उन्होंने मुझे सफलता का मार्ग प्रशस्त किया.” झालावाड़ जिले के भवानीमंडी के पास एक गांव के मूल निवासी, नाज़िया के पिता इसामुद्दीन एक लोडिंग टेंपो ड्राइवर हैं और उनकी मां अमीना एक गृहिणी हैं, जो कृषि क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूर के रूप में भी काम करती हैं.

कक्षा 12 में 90 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करने के बाद, नाज़‍िया ने कोचिंग के लिए खुद को इनरोल किया जिससे उन्‍हें प्रतियोगी परीक्षा में अपने पहले तीन प्रयासों में क्रमशः 487, 518, 602 नंबर स्‍कोर करने में मदद मिली. उन्‍होंने चौथी बार में 668 अंक हासिल किए. उनके समर्पण से प्रभावित होकर, संस्थान ने उनके चौथे प्रयास के दौरान उन्हें फीस में 75 प्रतिशत की छूट भी दी. नाजिया ने अपने सपने का समर्थन करने के लिए संस्थान को धन्यवाद दिया और कहा कि वह MBBS पूरा करने के बाद स्त्री रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं. उनका एक छोटा भाई है, जो 10वीं कक्षा में पढ़ रहा है और एक बहन जिसने हाल ही में 12वीं पास की है.