आपने सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा तो अवश्य सुनी होगी. इस कहानी में सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से प्राण वापस ले आई थीं, क्योंकि वो अपने पति से सच्चा प्रेम करती थीं. यहां जिस कहानी को आप पढ़ने जा रहे हैं, उसमें एक पति, अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए किसी भी हद जा चला जाता है. प्यार की यह सच्ची कहानी है पाली के खैरवा गांव के रहने वाले डॉ. सुरेश चौधरी और उनकी पत्नी अनिता उर्फ अंजू चौधरी की. डॉ. सुरेश ने अपनी पत्नी को मौत के मुंह से वापस लाने के लिए अपनी डॉक्टर की नौकरी को दांव पर लगा दी.

सुरेश-अनिता की शादी

25 अप्रैल 2012 को सुरेश चौधरी की शादी बाली की रहने वाली बेहद ही खूबसरत लड़की अनिता से हुई. अनिता के साथ सात जन्मों के बंधन में बंधते ही सुरेश की पूरी जिंदगी बदल गई. अनिता का साथ पाकर सुरेश बेहद खुश रहने लगा. शादी के तकरीबन एक साल बाद सुरेश ने अपना एमबीबीएस का कोर्स पूरा किया. फिर 4 साल बाद उनकी खुशी और दोगुनी हो गई, जब 4 जुलाई 2016 को उनके घर बेटे कूंज चौधरी का जन्म हुआ. सुरेश अपनी जिंदगी से बेहद खुश थे.

खुशहाल जिंदगी में आया भूचाल

वक्त के साथ सुरेश का प्यार अनिता के प्रति और गहरा होता गया. बेटा कूंज अब 5 साल का हो गया. सभी खुश थे. प्यार से जिंदगी जी रहे थे. अचानक मई 2021 में सुरेश की खुशहाल जिंदगी में उथल-पुथल मच गई. इस समय पूरा देश कोरना की दूसरी लहर की चपेट में था. सुरेश की पत्नी को बुखार आया, जांच में वो कोरना पॉजिटिव पाई गईं. फौरन सुरेश, अपनी पत्नी को लेकर बांगड़ हॉस्पिटल पहुंचे, मगर वहां बेड खाली नहीं था. फिर 14 मई 2021 को जोधपूर एम्स में अनिता को भर्ती कराया. दो दिन वे अपनी पत्नी के पास रहे. फिर उसके बाद अनीता को अपने रिश्तेदार के भरोसे छोड़ वो अपनी ड्यूटी पर लौट आए, क्योंकि उस वक्त कोरोना पीक होने के कारण डॉक्टरों को छुटटी नहीं मिल रही थी. इधर अनिता की हालत और भी खराब होती जा रही थी.

डॉ. सुरेश 30 मई को अपनी पत्नी से मिलने पहुंचे. उन्होंने वहां देखा कि वो एक छोटे से वेंटिलेटर पर थीं और लंग्स 95 फीसदी तक खराब हो चुके थे. डॉक्टरों ने कहा कि अनिता का बच पाना मुश्किल है. मगर सुरेश को पूरा यकीन था कि वो अपनी पत्नी को बचा लेंगे. इस भरोसे के साथ वह अनिता को अहमदाबाद ले गए और 1 जून को यहां एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती करवाया. यहां से डॉ. सुरेश की असली परीक्षा शुरु हुई.

हर दिन इलाज में हुए 1 लाख खर्च

दिन बीतने के साथ अनिता की हालत और भी खराब होती गई. उसका वजन 50 किलो से घटकर 30 किलो हो गया था. शरीर में सिर्फ डेढ़ यूनिट ही खून बचा था. अंनिता की जान बचाने क लिए डॉक्टरों ने उसे ईसीएमओ मशीन पर रखा. इस खास मशीन से  मरीजों के हार्ट और लंग्स को बाहर से ऑपरेट किया जाता है. मगर इस मसीन का रोजाना का खर्च 1 लाख रुपये से अधिक था. सुरेश अपनी पत्नी की जान किसी भी कीमत पर बचाना चाहते थे. लिहाजा, वे कर्ज में डूबते गए.

87 दिन बाद जिंदगी फिर मुस्कुराई

आखिरकार पूरे 87 दिन तक ईसीएमओ मशीन पर रहने के बाद अनिता के लंग्स में सुधार हुआ. वह फिर से बोलने लगी. डॉ. सुरेश अपनी पत्नी की जान यमराज के हाथों से छीन लाए. उन्होंने अनिता की जिंदगी बचाने के लिए अपना सब-कुछ दांव पर लगा दिया.

लगा दिया सबकुछ दांव पर

डॉ. सुरेश चौधरी ने अपनी 10 लाख की सेविंग, 15 लाख की जमीन और साथी डॉक्टर्स और स्टाफ के द्वारा मदद के तौर पर जुटाए गए 20 लाख रुपये इलाज में खर्च कर दिए. अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से तो कर्ज लिए ही, साथ ही अपनी एमबीबीएस की डिग्री के रजिस्ट्रेशन नंबर 4 बैकों में गिरवी रखा, जिससे उन्हें 70 लाख रुपये का लोन मिला. इस लोन के लिए बैंक ने उनसे उनका कैंसल चेक रखवा लिया, इस कॉन्ट्रेक्ट के साथ कि अगर तय अवधि में लोन नहीं चुकाने पर उनकी एमबीबीएस की डिग्री बैंक निरस्त करा सके. जून 2021 से लोन की किस्त आनी शुरू हो गई. डॉ. सुरेश की इस वक्त सैलरी 90 हजार रुपये है, जबकि हर महीने उन्हें 1 लाख 16 हजार रुपये किश्त भरना होता है. और यह उन्हें करीब 4 साल तक भरना है.

जिद और जुनून से बचाई जान

अनिता कहती हैं कि अगर वो जिंदा है, तो सिर्फ अपने पति की जिद और जुनून की वजह से. सुरेश कहते हैं कि मैंने अपनी पत्नी से सात जन्म तक साथ निभाने का वादा किया है. उसे यूं अपनी आंखों के सामने कैसे मरने देता. पैसे तो और कमा लूंगा, मगर अंजू को कुछ हो जाता तो शायद मैं भी जिंदा नहीं रह पाता