फाइलों के अम्बार से मुक्ति दिलायेगी डिजिटल भारत योजना
में बैंकिंग और लेनदेन के ज्यादातर काम डिजिटल हो गये हैं।

ऐसा होने से लोगों को सहूलियत भी बहुत हो रही है। पहले पेमेंट लेने के लिए दूर-दराज की यात्राएं करनी पड़ती थीं या फिर बैंकों में अपनी बारी आने का इंतजार करना पड़ता था। फाइलों के ढेर में उलझी रहती थी किस्मत की डोर। सरकारी दफ्तरों में फाइलों की सार-संभाल के लिए ही काफी सारा स्टाफ लगा रहता था। फाइलों में ही छिपा होता था लालफीताशाही का भूत। तब काम समय पर होने का नाम नहीं लेते थे। धीरे-धीरे सब कुछ ऑनलाइन होता चला गया। कोरोना काल में डिजिटल के अलावा और कोई उपाय भी नहीं था। घर से काम करने के लिए भी सभी को डिजिटल और ऑनलाइन होना आवश्यक हो गया। आने वाले कुछ वर्षो में जीवन से जुड़ा प्रत्येक काम डिजिटल हो जायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं।

डिजिटल भारत योजना के तहत देश में भूमि डेटाबेस को राजस्व न्यायालय के रिकॉर्ड, बैंक रिकॉर्ड और आधार के साथ लिंक करने पर विचार हो रहा है। हालांकि, आधार के साथ सब कुछ लिंक करना है या नहीं, यह निर्णय ऐच्छिक होगा, अनिवार्य नहीं। सरकार चाहती है कि देश के प्रत्येक भूखंड पर 14 अंकों की पहचान संख्या जारी की जाये। संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यह बाद में अपने भूमि रिकॉर्ड डेटाबेस को राजस्व अदालत के रिकॉर्ड और बैंक रिकॉर्ड के साथ-साथ स्वैच्छिक आधार पर आधार संख्या के साथ एकीकृत करेगा।
भूमि संसाधन विभाग के अनुसार, शुरुआती तौर पर दस राज्यों में विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (यूएलपिन) योजना शुरू की गयी, जिसे आने वाले समय में पूरे देश में लागू किया जा सकता है। यह डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम का अगला चरण है। योजना के तहत प्रत्येक जिले में 50 लाख रुपये लागत वाला एक आधुनिक लैंड रिकॉर्ड रूम स्थापित किया जाना है। इसके अलावा, राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली के साथ भूमि अभिलेखों के एकीकरण पर 270 करोड़ रुपये खर्च होंगे। बाद में बैंकों के साथ भूमि रिकॉर्ड डेटाबेस को जोड़ा जायेगा।

यूएलपिन होने से जमीन को लेकर होने वाले विवाद तेजी से सुलझाये जा सकेंगे। इससे जमीन संबंधी धोखाधड़ी रुकेगी, खासकर गांवों में, जहां भू रिकॉर्ड बहुत पुराने हैं या विवादित हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ‘सहमति-आधारित’ लिंकेज योजना को मंजूरी दे दी है। केंद्र सरकार की इस योजना को पहली बार 2014 में सार्वजनिक किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के पुराने कागज-आधारित भू-अभिलेखों और भूमि पंजीकरण प्रणाली को डिजिटल बनाना है। भारत में 30.16 करोड़ भूमि रिकॉर्ड होने का अनुमान है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, त्रिपुरा, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश ने आधार को भूमि रिकॉर्ड से जोड़ने के लिए पहले ही पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिये थे।

*हरियाणा

राजस्व विभाग का रिकॉर्ड डिजिटल मोड पर*

हरियाणा में राजस्व विभाग का रिकॉर्ड डिजिटल मोड पर आ चुका है।इसके लिए 18,500 दस्तावेजों को स्कैन करके एनआईसी के पोर्टल पर अपलोड किया गया। रविवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर ने वर्चुअल मीटिंग के जरिए प्रदेश के सभी 22 जिलों के आधुनिक रेवेन्यू रिकॉर्ड रूम्स का लोकार्पण किया। अब ये दस्तावेज कंप्यूटर के एक क्लिक पर नजर के सामने होंगे। हर जिले में इसके लिए डिजिटल लैब तैयार की गयी हैं। लैब में सिंचाई, शहरी व स्थानीय निकाय, कृषि एवं किसान कल्याण, विकास एवं पंचायत, पुलिस व शिक्षा विभाग सहित सभी विभागों का रिकॉर्ड भी एकत्रित किया जायेगा।