बीजापुर I आज तक नक्सलियों को लड़ाई के लिए गोला-बारूद की सप्लाई तमिलनाडु, तेलंगाना की तरफ से होती रही है, लेकिन हाल के कुछ सालों में बस्तर पुलिस के साथ-साथ वहां की पुलिस ने इस पर प्रभावी रोक लगाई है। ऐसे में अब हथियारों की आपूर्ति के लिए नक्सली अपनी देसी फैक्ट्रियों में बम व अन्य हथियार तैयार कर रहे हैं।

नक्सलियों की लोकल कंट्री मेड हथियारों की फैक्ट्री पहले भी चलती थी लेकिन हाल ही में नक्सलियों ने बीजीएल बनाने की शुरुआत की है और बस्तर के अलग-अलग इलाकों में बड़ी मात्रा में बीजीएल (बैरल ग्रेनेड लांचर) बनाये हैं। इन लांचरों को बनाने के बाद नक्सलियों को इससे फोर्स को बड़ा नुकसान होने की उम्मीद थी।

अलग-अलग देसी फैक्ट्रियों में बने ग्रेनेड की जांच करने के लिए नक्सलियों ने हाल ही में फोर्स के कैंपों में बड़े हमले किये। नक्सली देखना चाह रहे थे कि उनकी फैक्ट्री में बने ग्रेनेड लांचर कैसा काम कर रहे हैं। यही कारण है कि अप्रैल में बीजापुर के दरभा, एलमागुंडा, कोटकपल्ली जैसे कैंपों पर नक्सलियों ने बड़े हमले किए और हमले के लिए बड़ी मात्रा में बीजीएल अपने साथ लाए और कैंपों के अंदर इन्हें दागा।

हालांकि एलमागुंडा, कोटकपल्ली के सीआरपीएफ कैंप पर हमले में कोई घायल नहीं हुआ लेकिन दरभा में सीएएफ के 3 जवान घायल हुए थे। डेटोनेटर के लिए नक्सली तेलंगाना के करीमनगर, खम्मम, वारंगल, आदिलाबाद जैसे इलाकों पर निर्भर रहते हैं।

सीनियर लीडर नंदू बना रहा देसी हथियार
नक्सलियों के लिए देसी हथियार बनाने का काम सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के सीनियर लीडर नंदू के कंधे पर है। नंदू को गोला-बारूद हथियारों के संबंध में काफी टेक्निकल जानकारी है। हथियार बन जाने के बाद निचले स्तर तक हथियार बनाने की तकनीक भेजी जाती है।

स्थानीयस्तर पर नक्सलियों के जोनल, डिविजन और बटालियनस्तर पर टेक्निकल टीमें हैं। इनके पास लैथ मशीनें, सांचे, वेल्डिंग मशीन उपलब्ध हैं, जिनके जरिये ऊपर से आई तकनीक का उपयोग करते हुए हथियार बनाये जाते हैं।

मछलियां मारने के लिए अमोनियम नाइट्रेट से विस्फोट इसी बहाने ओडिशा-आंध्र से नक्सली ले आते हैं बारूद
नक्सलियों को देसी रॉकेट लांचर के लिए बारूद और दीगर सामानों की सप्लाई शहरी नेटवर्क के जरिये ही हो रही है। देसी राॅकेट लाॅन्चर में विस्फोट के लिए नक्सली अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग कर रहे हैं। इसकी आपूर्ति नक्सलियों को ओडिशा और आंध्रप्रदेश से हो रही है।

दरअसल, इन इलाकों में बड़े पैमाने पर मछली पालन होता है। मछलियों को मारने के लिए मछली पालक अमोनियम नाइट्रेड के जरिये तालाबों के अंदर विस्फोट करते हैं। इस काम के लिए उन्हें अमोनियम नाइट्रेट मिल जाता है। ऐसे में बड़ी मात्रा में वहां से अमोनियम नाइट्रेट नक्सलियों तक पहुंच जाता है।

कुछ रास्ते में ही फटे, कुछ तो फटे ही नहीं | नक्सलियों ने अपनी देसी फैक्ट्री में जो ग्रेनेड लांचर बनाए हैं उनकी मारक क्षमता 200-300 मीटर है। कैंपों में जब इन हथियारों के जरिए हमला हुआ तो ज्यादातर बीजीएल फटे ही नहीं। वहीं कुछ तो हवा में ही फट गये। कैंपों से बरामद बीजीएल का जब जवानों ने ट्रायल लिया तो पता चला कि इनकी मारक क्षमता अधिकतम तीन सौ मीटर है। किलिंग जोन 10 से 15 मीटर का है।

तेलंगाना से चोरी के डेटोनेटर
डेटोनेटर की आपूर्ति के लिए नक्सली तेलंगाना के करीमनगर, खम्मम, वारंगल, आदिलाबाद की खदानों में बस्तर से अपने लड़ाकों को मजदूरी करने के नाम पर भेजते रहे हैं। मजदूरी करते-करते नक्सलियों के लड़ाके एक-एक दो-दो डेटोनेटर इन खदानों से चुराकर अपने पास रखते हैं और फिर करीब 100 डेटोनेटर जमा होने पर इन्हें एक साथ बस्तर लाया जाता है।

हथियार नहीं मिल रहे नक्सलियों को
अभी नक्सलियों को बाहर से भी स्वचालित हथियार नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में लोकल लेवल पर हथियारों की आपूर्ति का प्रयास कर रहे हैं। हम पहले भी नक्सलियों की देसी हथियार फैक्ट्री और कैम्प ध्वस्त कर चुके हैं। आगे भी ये करवाई जारी रहेगी।
सुंदरराज पी, आईजी, बस्तर